REDD+ हिमालय’ परियोजना

चर्चा में क्यों?

हिमालयी राज्यों के लिये चलाए जा रहे निर्वनीकरण एवं वन निम्नीकरण से होने वाले उत्सर्जन में कटौती (Reducing Emissions from Deforestation and Forest Degradation-REDD+) परियोजना के क्रियान्वयन की अवधि को जुलाई 2020 तक के लिये बढ़ा दिया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • REDD+ परियोजना का कार्यान्वयन एकीकृत पर्वतीय विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (International Centre for Integrated Mountain Development-ICIMOD) एवं भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (Indian Council of Forestry Research and Education- ICFRE) द्वारा संयुक्त रूप से चलाया जा रहा है।
  • इसके शुरुआत वर्ष 2016 में मिज़ोरम राज्य से की गई। इसे हिमालयी राज्यों में निर्वनीकरण एवं वन निम्नीकरण हेतु उत्तरदायी कारकों के विषय में कार्यवाही करने के लिये शुरू किया गया था।
  • हालाँकि इस कार्यक्रम की समय सीमा वर्ष 2018 में समाप्त हो गई थी परंतु इसके महत्त्व तथा योगदान को देखते हुए इस अवधि को जुलाई 2020 तक बढ़ा दिया गया है।
  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य क्षमता निर्माण करना है। हिमालय क्षेत्र में स्थानीय समुदाय ईंधन और आजीविका के लिये वनों पर निर्भर रहते हैं। स्थानीय समुदायों के वनों पर रहने के कारण निर्वनीकरण एवं वन निम्नीकरण को बढ़ावा मिलता है।
    • इस कार्यक्रम के तहत स्थानीय लोगों को उच्च क्षमता के स्टोव उपलब्ध करवाकर ईंधन के लिये वनों पर उनकी निर्भरता को कम किया गया।
    • बाँस रोपण व कॉफ़ी बागानों के साझाकरण के द्वारा आजीविका के वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध कराए गए।
    • इस क्षेत्र के हल्दी उत्पादक किसानों को हल्दी को सुखाने और उसके प्रसंस्करण के लिये सोलर ड्रायर उपलब्ध करवाए गए हैं।

‘REDD+ हिमालय’ कार्यक्रम

  • वर्ष 2013 में ICIMOD द्वारा ‘REDD+ हिमालय’ कार्यक्रम भूटान, नेपाल, भारत, म्याँमार शुरू किया गया।
  • इसका उद्देश्य REDD+ का समर्थन करना है।
  • यह परियोजना जर्मनी के पर्यावरण, प्रकृति संरक्षण और परमाणु सुरक्षा मंत्रालय द्वारा समर्थित है।
  • REDD+ कार्यक्रम को संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2005 में विकासशील देशों में वन प्रबंधन के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिये शुरू किया गया था।

एकीकृत पर्वतीय विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र

(International Centre for Integrated Mountain Development-ICIMOD)

  • ICIMOD एक स्‍वतंत्र पर्वत शिक्षा और ज्ञान केंद्र है, जो हिंदुकुश-हिमालय (Hindu-kush Himalaya- HKH) क्षेत्र के आठ देशों- अफगानिस्‍तान, बांग्‍लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्याँमार, नेपाल एवं पाकिस्‍तान तथा वैश्विक पर्वतीय समूह को अपनी सेवाएँ देता है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1983 में की गई थी तथा इसका मुख्यालय काठमांडू (नेपाल) में है।
  • यह संस्‍था अंतरसरकारी, परंतु स्‍वतंत्र संगठन है।

उद्देश्य

  • इसका उद्देश्‍य विस्‍तृत हिमालयी क्षेत्र में आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से सशक्‍त पर्वतीय पारिस्‍थतिकी का निर्माण करना तथा पर्वतवासियों की जीवन-दशा को सुधारना है।
  • इसने आठों क्षेत्रीय सदस्‍य देशों और क्षेत्र के भीतर या बाहर की संस्‍थाओं के साथ साझेदारी विकसित की है।

लक्ष्य

  • ICIMOD का लक्ष्‍य पर्वतवासियों को मौजूदा पर्यावरणीय परिवर्तनों के बारे में समझाना, इसके लिये उन्‍हें तैयार करना और नई क्षमताओं का सृजन करना है।
  • इसके कार्यों का रणनीतिक क्षेत्र इस प्रकार है-
  1. एकीकृत जल और अपशिष्‍ट प्रबंधन
  2. पर्यावरणीय परिवर्तन और पारिस्थि‍तिकीय सेवाएँ
  3. स्‍थायी जीवनयापन और गरीबी निवारण।

ICIMOD के क्षेत्रीय कार्यक्रम

Thematic core compelencies

हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र

(Hindu Kush Himalayan Region)

  • हिंदू कुश हिमालय (HKH) क्षेत्र पश्चिम में अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में म्याँमार तक आठ देशों के सभी भागों या लगभग 3,500 किमी. से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है।

Hindukush Himalaya

  • यह क्षेत्र एशिया की दस बड़ी नदी प्रणालियों- आमू दरिया, सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, इरावदी, सल्वेन (नू), मेकांग (लंकांग), यांग्त्से (जिंशा), येलो रिवर (ह्वांग) और तरिम का स्रोत है। इन नदियों की घाटियों से 1.9 बिलियन लोगों को जलापूर्ति होती है जो दुनिया की कुल आबादी का एक चौथाई हिस्सा है।
  • यह क्षेत्र में लगभग 240 मिलियन लोगों की आबादी के लिये जल, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ और आजीविका का आधार प्रदान करता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


वन स्टॉप सॉल्यूशन

चर्चा में क्यों?

देश भर में ‘इलेक्टर वेरिफिकेशन प्रोग्राम’ (Electors Verification Programme) के मेगा मिलियन लॉन्‍च के अवसर पर भारतीय निर्वाचन आयोग ने 1 सितंबर, 2019 को नई दिल्ली में राष्‍ट्रीय मतदाता सेवा पोर्टल (National Voters’ Service Portal-NVSP) और मतदाता हेल्‍पलाईन एप (Voter Helpline App) का अनावरण किया।

प्रमुख बिंदु

  • मतदाता सूची भारतीय निर्वाचन आयोग की आधारशिला है।
  • यह एक महत्त्वपूर्ण अवसर है जब सभी मतदाता अपने ब्‍यौरों को सत्‍यापित और प्रमाणित कर सकते हैं।
  • कार्यक्रम का मुख्‍य उद्देश्‍य मतदाता सूची को बेहतर बनाना, नागरिकों को बेहतर मतदात सेवाएँ प्रदान करना और आयोग तथा मतदाताओं के बीच संवाद को बेहतर बनाना है।
  • 32 मुख्य चुनाव अधिकारियों (CEOs) ने राज्‍यों/केंद्र शासित प्रदेशों में, 700 ज़िला निर्वाचन अधिकारियों (DEOs) ने ज़िलों में और लगभग 10 लाख मतदान केंद्रों में बूथ लेवल के अधिकारियों (BLOs/EROs) ने देश में सभी स्‍तरों पर इस कार्यक्रम की शुरुआत की है। यह कार्यक्रम 1 सितंबर, 2019 से 15 अक्‍तूबर, 2019 तक चलेगा।

मतदाता NVS पोर्टल या मतदाता हेल्‍प लाइन एप अथवा साझा सेवा केंद्रों या निकट के किसी मतदान सुविधा केंद्र पर जाकर निम्‍न सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं।

  • वर्तमान विवरणों की जाँच और सुधार।
  • निम्‍न दस्‍तावेजों के ज़रिये प्रविष्टियों का सत्‍यापन/प्रमाणन:
    • (1) भारतीय पासपोर्ट (2) ड्राइविंग लाइसेंस (3) आधार कार्ड (4) राशन कार्ड (5) सरकारी/अर्द्ध सरकारी कर्मियों का पहचान-पत्र (6) बैंक खाता (7) किसान पहचान कार्ड (8) पेन कार्ड (9) RGI (Registrar General and Census Commissioner of India) द्वारा जारी स्‍मार्ट कार्ड (10) पानी/बिजली/टेलिफोन/गैस कनेक्‍शन का नवीनतम बिल।
  • परिवार के सदस्‍यों का विवरण देना तथा उनकी प्रविष्टियों की जाँच।
  • मतदाता सूची में नाम वाले परिवार के सदस्‍य, परिवार के सदस्‍य जिनके नाम मतदाता सूची में हैं और जो स्‍थायी रूप से अन्‍य जगह जा चुके हैं या जिनकी मृत्‍यु हो गई है के विवरणों को अद्यतन करना।
  • 1 जनवरी, 2001 को या इससे पहले जन्‍मे परिवार के योग्‍य सदस्‍यों तथा संभावित मतदाता, जिनका जन्‍म 2 जनवरी, 2002 से एक जनवरी, 2003 के बीच हुआ है और वे मतदाता के साथ रह रहे हैं, के ब्‍यौरे को जमा करना।
  • बेहतर मतदाता सेवाओं के लिये मोबाइल एप के माध्‍यम से आवास को GIS (Geographic Information System) को जोड़ना।
  • वर्तमान के मतदान केंद्र के बारे में अनुभव साझा करना और यदि कोई अन्‍य वैकल्पिक मतदान केंद्र है तो इसकी जानकारी देना।
  • ब्‍यौरे के प्रमाणन से तथा मोबइल नंबर को साझा करने से मतदाताओं को ऑनलाइन आवेदन की स्थिति, EPIC (Electoral Photo ID Card) की स्थिति, मतदान दिवस की घोषणाएँ, मतदाता स्लिप आदि से संबंधित जानकारी उनके पंजीकृत ईमेल और मोबाइल नंबर पर दी जाएगी।

मतदाता सूची की क्रमसंख्‍या में बदलाव, मतदान केंद्र का ब्‍यौरा, BLO/ERO में बदलाव से संबंधित मतदान केंद्र की सभी जानकारी मतदाताओं के साथ साझा की जाएगी।

इस अवसर पर निर्वाचन आयोग के कर्मियों ने अपने तथा अपने परिजनों के विवरणों का सत्‍यापन व प्रमाणन किया।

स्रोत: PIB


एक देश दो प्रणाली

चर्चा में क्यों?

हॉन्गकॉन्ग में लगातार चल रहे विरोध प्रदर्शन के बीच चीन की एक देश दो प्रणाली (One Country Two Systems) नीति फिर से चर्चा में आ गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • हॉन्गकॉन्ग की स्थानीय सरकार द्वारा एक विवादास्पद कानून लाए जाने के बाद से ही स्थानीय लोग इसे हॉन्गकॉन्ग की स्वायत्तता का उल्लंघन मान रहे हैं जिसकी वजह से चीन के विरुद्ध वहाँ पर लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर चीन इस प्रकार के प्रदर्शन को देश विरोधी बता रहा है।
  • हॉन्गकॉन्ग और मकाउ क्षेत्र चीन के मुख्य भू-भाग से आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर भिन्न हैं इसलिये उन्हें विशेष प्रशासनिक क्षेत्र घोषित किया गया है।

नीति की उत्पत्ति:

  • डेंग शियाओपिंग (Deng Xiaoping) द्वारा वर्ष 1970 के आसपास देश के शासन की बागडोर संभालने के बाद एक देश दो प्रणाली (One Country Two Systems) नीति प्रस्तावित की गई थी। डेंग की इस योजना का मुख्य उद्देश्य चीन और ताइवान को एकजुट करना था।
  • इस नीति के माध्यम से ताइवान को उच्च स्वायत्तता देने का वादा किया गया था। इस नीति के तहत ताइवान चीनी संप्रभुता के अंतर्गत अपनी पूंजीवादी आर्थिक प्रणाली का पालन कर सकता है, एक अलग प्रशासन चला सकता है और अपनी सेना रख सकता है। हालाँकि ताइवान ने कम्युनिस्ट पार्टी के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
  • चीन के राष्ट्रवादी समर्थकों को वर्ष 1949 में कम्युनिस्टों ने गृहयुद्ध में हरा दिया था। कम्युनिस्टों से हारने के बाद चीन के राष्ट्रवादी ताइवान चले गए थे।
  • राष्ट्रवादियों द्वारा तब से ताइवान में चीन से एक अलग शासन चलाया जा रहा है, हालांँकि चीन ने ताइवान पर अपना दावा कभी नहीं छोड़ा।

ताइवान और मकाउ का इतिहास:

  • हॉन्गकॉन्ग और मकाउ क्रमशः ब्रिटेन और पुर्तगाल के उपनिवेश थे। वर्ष 1842 के प्रथम अफीम युद्ध के बाद अंग्रेज़ों ने हॉन्गकॉन्ग पर अधिकार कर लिया था। ब्रिटिश सरकार और चीन के किंग राजवंश ने पेकिंग के दूसरे कन्वेंशन पर वर्ष 1898 में हस्ताक्षर किये , जिसके अनुसार हॉन्गकॉन्ग को 99 वर्षों के लिये चीन ने लीज़ पर ब्रिटेन को दे दिया। वहीं दूसरी ओर मकाउ पर वर्ष 1557 से पुर्तगालियों का शासन था। पुर्तगाल ने 1970 के दशक के मध्य से ही अपने सैनिकों को वापस बुलाना शुरू कर दिया था।
  • डेंग शियाओपिंग ने 1980 के दशक से ही दोनों क्षेत्रों का हस्तांतरण चीन को करने के लिये ब्रिटेन और पुर्तगाल के साथ बातचीत शुरू की। बातचीत के दौरान ही चीन ने एक देश दो प्रणाली के तहत इन क्षेत्रों की स्वायत्तता का सम्मान करने का वादा किया था।
  • चीन और ब्रिटेन के बीच 19 दिसंबर, 1984 को बीजिंग में चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर किये गए थे, जिसके तहत हॉन्गकॉन्ग हेतु वर्ष 1997 से कानूनी, आर्थिक और सरकारी प्रणालियों में स्वायत्तता का निर्धारण किया गया था।
  • इसी तरह 26 मार्च, 1987 को चीन और पुर्तगाल ने मकाउ के प्रश्न पर संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर किये, जिसमें चीन ने मकाउ को भी हॉन्गकॉन्ग की भांँति स्वायत्तता देनी की बात कही थी।
  • उपरोक्त दो अनुबंधों के बाद एक देश दो प्रणाली की नीति को व्यावहारिक स्तर पर लागू किया गया था।
  • 1 जुलाई, 1997 को हॉन्गकॉन्ग और 20 दिसंबर, 1999 को मकाउ चीनी नियंत्रण में आ गए। चीन ने दोनों देशों को विशेष प्रशासनिक क्षेत्र घोषित किया।
  • इस प्रकार इन देशों की अपनी मुद्राएँ, आर्थिक और कानूनी प्रणालियांँ होंगी, लेकिन रक्षा तथा विदेशी कूटनीति चीन द्वारा तय की जाएगी।
  • इसके तहत 50 वर्षों के लिये एक मिनी संविधान बनाया गया जो हॉन्गकॉन्ग हेतु वर्ष 2047 तक और मकाउ के लिये वर्ष 2049 तक वैध होगा। इस समयावधि के बाद की संवैधानिक स्थिति को स्पष्ट नहीं किया गया है।

वर्तमान संकट:

  • हाल के वर्षों में हॉन्गकॉन्ग की स्वायत्तता को नष्ट करने के संबधी चीन के कथित प्रयासों के विरुद्ध यहाँ के लोकतंत्र समर्थक नागरिक समाज में तनाव बढ़ गया है। जिसके परिणामस्वरूप यहाँ के युवाओं ने स्थानीय सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन शुरू कर दिया।
  • हॉन्गकॉन्ग की एक स्थानीय पार्टी हॉन्गकॉन्ग नेशनल पार्टी को वर्ष 2018 में गैर कानूनी घोषित कर दिया गया था।
  • इस वर्ष हॉन्गकॉन्ग की मुख्य कार्यकारी कैरी लैम ने प्रत्यर्पण विधेयक का प्रस्ताव रखा, जिसमें हॉन्गकॉन्ग के लोगों को उन स्थानों पर प्रत्यर्पित करने का प्रावधान किया गया था जो हॉन्गकॉन्ग के प्रत्यर्पण समझौते के तहत नहीं आते हैं, इसमें चीन भी शामिल है।
  • इस प्रकार के प्रत्यर्पण समझौते से चीन, हॉन्गकॉन्ग से किसी व्यक्ति को प्रत्यर्पित कर सकता है जो सीधे-सीधे यहाँ की स्वायत्तता पर हमला होगा इसका विरोध हॉन्गकॉन्ग में बड़े स्तर पर हो रहा है।
  • वर्तमान में विरोध के बाद इस समझौते के मसौदे को वापस ले लिया है लेकिन गिरफ्तार प्रदर्शनकारियों को रिहा करने और शहर की चुनावी प्रणाली में सुधार हेतु अभी प्रदर्शन जारी हैं।

स्रोत: द हिंदू


G7 सम्मेलन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में फ्रांँस के बिआरित्ज़ (Biarritz) में G7 सम्मेलन संपन्न हुआ। इस सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फ्रांँसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन के विशेष अतिथि के रूप में शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिये आमंत्रित किया गया था।

G7 क्या है?

  • G7 में कनाडा, फ्रांँस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। यह एक अंतर-सरकारी संगठन है जिसे वर्ष 1975 में उस समय की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं द्वारा वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करने के लिये एक अनौपचारिक मंच के रूप में गठित किया गया था।
  • कनाडा वर्ष 1976 और यूरोपीय संघ वर्ष 1977 से समूह में भाग ले रहे हैं। वर्ष 1998 में रूस के इस समूह में शामिल होने के बाद कई वर्षों तक G7 को G8 के रूप में जाना जाता था। रूस को वर्ष 2014 में क्रीमिया विवाद के बाद सदस्यता से निष्कासित कर दिये जाने के पश्चात् समूह को फिर से G7 कहा जाने लगा।
  • G7 देशों के राष्ट्राध्यक्ष वार्षिक शिखर सम्मेलन में मिलते हैं जिसकी अध्यक्षता सदस्य देशों के नेताओं द्वारा एक घूर्णन आधार (Rotational Basis) पर की जाती है।
  • फ्रांँस में संपन्न G7 का यह 45वांँ शिखर सम्मेलन है और अगला शिखर सम्मेलन वर्ष 2020 में संयुक्त राज्य अमेरिका में आयोजित किया जाएगा। मेज़बान देश आमतौर पर शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिये G7 के बाहर के गणमान्य लोगों को आमंत्रित करता है।

शेरपा (Sherpas):

  • शेरपा द्वारा शिखर सम्मेलन के लिये ज़मीनी स्तर के मुद्दों हेतु मुख्य सम्मेलन से पहले अनुवर्ती बैठकें की जाती हैं।
  • शेरपा आमतौर पर व्यक्तिगत प्रतिनिधि या राजनयिक स्टाफ के सदस्य जैसे राजदूत होते हैं।
  • वर्तमान शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिये शेरपा पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु हैं।

G7 के उद्देश्य:

  • G7 की शुरुआत अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा 1970 के दशक के अंत में वैश्विक आर्थिक संकट से लड़ने के लिये की गई थी।
  • G7 अपने गठन के बाद से ही दशक को प्रभावित करने वाले वित्तीय संकट और विशिष्ट चुनौतियों से निपटने हेतु समाधान जैसे मुद्दों पर चर्चा करता है। इसके साथ ही यह विघटन के बाद के सोवियत राष्ट्रों के आर्थिक बदलाव, आतंकवाद, हथियारों पर नियंत्रण और ड्रग तस्करी जैसे अन्य मुद्दों पर चर्चा करता है।
  • G7 का कोई औपचारिक संविधान या एक निर्धारित मुख्यालय नहीं है। वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान देशों द्वारा लिये गए निर्णय गैर-बाध्यकारी होते हैं।

इस सम्मेलन में भारत का पक्ष:

  • भारत को फ्रांँस द्वारा शिखर सम्मेलन में एक विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है।
  • भारत और फ्रांँस जलवायु परिवर्तन से निपटने तथा अक्षय ऊर्जा के विकास जैसे सामान्य हितों को ध्यान में रखते हुए अपने संबंधों को बढ़ावा दे रहे हैं।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2015 में राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के साथ मिलकर अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत की थी।
  • भारत के प्रधानमंत्री ने शिखर सम्मेलन में डिजिटलीकरण और जलवायु परिवर्तन पर सत्र को संबोधित किया। भारत के प्रधानमंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस और सेनेगल के राष्ट्रपति मैके सैल के साथ भी बातचीत की।
  • जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने क्षेत्रीय तनाव को कम करने और मानवाधिकारों के लिये बनाई गई योजनाओं के बारे में जानकारी दी। सम्मेलन में कश्मीर मुद्दे को भारत का आंतरिक मामला करार दिया गया।

सम्मेलन के प्रमुख मुद्दे:

  • मेज़बान के रूप में फ्राँसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन ने ईरान के विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ को आमंत्रित करने का निर्णय लिया, लेकिन अन्य G7 सदस्यों ने ईरान परमाणु समझौते के भविष्य पर चर्चा करने के लिये उन्हें सम्मेलन में शामिल करने के किसी भी सुझाव को अस्वीकार कर दिया।
  • रूस को वापस इस क्लब में आमंत्रित करने के प्रयास किये गए लेकिन इस मुद्दे पर सामंजस्यता नही बन पाई।
  • G7 के सदस्यों ने अमेज़ॅन वनों के आग के संकट पर भी चर्चा की और ब्राज़ील को 20 मिलियन डॉलर से अधिक सहायता देने का वादा किया गया।
  • भारत की तरफ से जलवायु परिवर्तन का मुद्दा भी गंभीरता से उठाया गया। भारत ने अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए जैव विविधता और महासागरों पर समर्पित शिखर सम्मेलन में भी भाग लिया। इस सम्मेलन में अमेज़ॅन वनों के आग को कम करने के लिये भारत के योगदान को रेखांकित किया गया है।

स्रोत: द हिंदू


विशेष डेटा प्रसार मानक (SDDS)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetory Fund- IMF) ने 'वर्ष 2018 के लिये विशेष डेटा प्रसार मानक की वार्षिक अवलोकन रिपोर्ट' (Annual Observance Report of the Special Data Dissemination Standard for 2018) जारी की जिसके अनुसार, भारत SDDS में निर्धारित कई मानकों का पालन करने में विफल रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • IMF द्वारा जारी इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 में भारत की ओर से विभिन्न श्रेणियों का डेटा जारी में कई देरी हुई।
  • भारत के अन्य समकक्ष BRICS देशों- ब्राज़ील, चीन, दक्षिण अफ्रीका और रूस ने लगातार डेटा-प्रसार संबंधी सभी मानकों को पूरा किया है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2016 तक भारत की ओर से जारी किये जाने वाले आँकड़ों में निरतंरता थी। लेकिन वर्ष 2017 और 2018 के दौरान यह विभिन्न श्रेणियों के डेटा जारी करने में विफल रहा।
  • भारत ने माना है कि IMF के मानकों का पालन न करने का कारण राष्ट्रीय सारांश डेटा पेज (NSDP) के वेब पेज में तकनीकी खराबी है।
  • नेशनल समरी डेटा पेज (NSDP) आर्थिक और वित्तीय डेटा के एकल व्यापक स्रोत तक त्वरित पहुँच प्रदान करता है।
  • रिपोर्ट में SDDS से तीन प्रकार के विचलन को सूचीबद्ध किया गया है:
    • पहले प्रकार का विचलन तब होता है जब सदस्य देश SDDS में डेटा प्रसार हेतु निर्धारित अवधि के बजाय देरी से डेटा प्रसार करते हैं।
    • दूसरे प्रकार का विचलन तब होता है जब सदस्य देश SDDS द्वारा अनिवार्य श्रेणी के बावजूद अपने अग्रिम रिलीज कैलेंडर (Advance Release Calendars- ARC) में किसी डेटा श्रेणी को सूचीबद्ध नहीं करते हैं।
    • तीसरा विचलन तब होता है जब किसी विशेष अवधि के लिये डेटा का प्रसार बिल्कुल भी नहीं किया जाता है।

विशेष डेटा प्रसार मानक (SDDS) क्या है?

  • SDDS जनता के बीच व्यापक आर्थिक आँकड़े जारी करने हेतु एक वैश्विक मानक/बेंचमार्क है।
  • इसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा वर्ष 1996 में तैयार किया गया था।
  • IMF ने सदस्य देशों की डेटा पारदर्शिता को बढ़ाने और देशों की आर्थिक स्थितियों का आकलन करने के लिये पर्याप्त जानकारी के साथ वित्तीय बाज़ार सहभागियों की सहायता हेतु SDDS पहल की शुरुआत की।
  • भारत ने 27 दिसंबर, 1996 को SDDS को अपनाया।
  • SDDS की सदस्यता यह दर्शाती है कि एक देश ‘अच्छे सांख्यिकीय नागरिकता’ (Good Statistical Citizenship) के परीक्षण को पूरा करता है।
  • किसी देश की आर्थिक स्थिति जिसमें राष्ट्रीय लेखा (सकल घरेलू उत्पाद तथा सकल राष्ट्रीय आय), उत्पादन सूचकांक, रोज़गार तथा केंद्र सरकार के संचालन शामिल हैं, का पता लगाने के लिये IMF इस वार्षिक अवलोकन रिपोर्ट में 20 से अधिक श्रेणियों के डेटा को महत्त्व देता है।

SDDS Plus:

  • SDDS प्लस फंड के डेटा स्टैंडर्ड इनिशिएटिव्स (Data Standards Initiatives) में सबसे उच्च श्रेणी का है और इसकी गणना SDDS के तहत प्राप्त प्रगति के आधार पर की जाती है।
  • हालाँकि यह व्यवस्थित रूप से महत्वपूर्ण वित्तीय क्षेत्रों की प्रगति को लक्षित करता है फिर भी यह सभी SDDS ग्राहकों के लिये उपलब्ध है।
  • SDDS प्लस डेटा पारदर्शिता बढ़ाने और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को सुदृढ करने के लिये मज़बूत डेटा प्रसार प्रथाओं पर ज़ोर देता है।

SDDS की आवश्यकता

डेटा प्रसार मानक समय पर व्यापक आँकड़ों की उपलब्धता में वृद्धि करते हैं, जो कि वृहद् आर्थिक नीतियों और वित्तीय बाज़ारों के कुशल कामकाज में योगदान देता है।

स्रोत: द हिंदू


मुद्रा हस्तातंरण का विवाद और RBI

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) के केंद्रीय बोर्ड ने केंद्र सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपए हस्तांतरित करने का फैसला किया था। अनुमानतः RBI द्वारा दिये जा रहे इस धन से केंद्र सरकार अर्थव्यवस्था में वित्त की आपूर्ति बढ़ाना चाहती है जिससे आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।

प्रमुख बिंदु:

  • केंद्र सरकार को वित्त हस्तांतरण का यह फैसला RBI के केंद्रीय बोर्ड द्वारा अपनाए गए नए आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क (Economic Capital Framework-ECF) के तहत लिया गया है।
  • ज्ञातव्य है कि बीते वर्ष RBI ने अपने ECF की समीक्षा हेतु RBI के पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था।
  • वित्त हस्तांतरण के अतिरिक्त समिति ने प्रत्येक 5 वर्षों में RBI के आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क की समीक्षा का भी सुझाव दिया था।
  • गौरतलब है कि RBI की परिचालन और आकस्मिक ज़रूरतों के अतिरिक्त उसकी बैलेंस शीट (Balance Sheet) में जो राशि बचती है उसका कुछ हिस्सा केंद्र सरकार को हस्तांतरित कर दिया जाता है और यह प्रक्रिया कमोबेश प्रत्येक वर्ष की जाती है।
  • इस वर्ष भी रिज़र्व बैंक द्वारा सामान प्रक्रिया अपनाई गई है, परंतु इस वर्ष हस्तांतरण की राशि इतनी अधिक है कि वह मुख्य धारा में चर्चा का विषय बन गई है।
  • ज्ञातव्य है कि बीते वर्ष RBI ने केंद्र सरकार को सिर्फ 50,000 करोड़ रुपए की राशि हस्तांतरित की थी, जो इस वर्ष 146.8 प्रतिशत बढ़ गई है।
  • इसे पूर्व RBI ने वर्ष 2014-15 में केंद्र सरकार को 65,896 करोड़ रुपए हस्तांतरित किये थे, जो कि अब तक की सबसे अधिक राशि थी।

हस्तांतरण को लेकर विवाद

  • इतने बड़े पैमाने पर हो रहे हस्तांतरण ने इन चिंताओं को गहरा दिया है कि सरकार अपनी तत्काल खर्च की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये RBI के धन का प्रयोग कर रही है और यदि ऐसा ही होता रहा तो RBI देश के केंद्रीय बैंक से सरकार का बैंक बन जाएगा।
  • सैद्धांतिक तौर पर RBI जैसी संस्थाओं को सभी प्रकार के सरकारी प्रभाव से स्वतंत्र माना जाता है, परंतु वास्तव में दुनिया भर की सरकारें केंद्रीय बैंकों के माध्यम से देश की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करने की कोशिश करती रहती हैं।
  • भारत में केंद्र सरकार द्वारा RBI के गवर्नर की नियुक्ति भी इसी का उदाहरण माना जाता है।
  • इससे पूर्व वित्त विधेयक (Finance Bill) में संशोधन करते हुए केंद्र सरकार ने यह प्रावधान किया था कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India-SEBI) को अपने सरप्लस का एक निश्चित हिस्सा सरकार के संचित निधि (Consolidated Funds) में जमा करना पड़ेगा।
  • कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि सरकार को अपनी वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करने के लिये RBI जैसे सार्वजनिक संस्थानों के पास उपलब्ध अतिरिक्त धन का उपयोग करने का अधिकार है।
  • हालाँकि इस निर्णय के आलोचकों का तर्क है कि RBI और SEBI जैसे नियामक संस्थानों की वित्तीय संपत्ति को छीनना उनकी स्वतंत्रता के साथ समझौता करने के सामान है।

RBI की आय के स्रोत

  • RBI कई तरीकों से पैसा कमाता है। उदाहरण के लिये खुले बाज़ार की क्रियाएँ, जिसमें RBI अर्थव्यवस्था के अंतर्गत मुद्रा की आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिये सरकारी बॉण्ड (Bonds) को खरीदता व बेचता है।
  • बॉण्ड पर मिलने वाले ब्याज़ के अतिरिक्त, RBI को बॉण्ड की कीमत में अनुकूल परिवर्तन होने से भी काफी लाभ प्राप्त होता है। अतः बॉण्ड से होने वाली आय RBI की आय का प्रमुख स्रोत मानी जाती है।
  • इसके अतिरिक्त RBI को विदेशी मुद्रा बाज़ार से भी कुछ आय प्राप्त होती है।
  • हालाँकि अन्य वाणिज्यिक बैंकों के विपरीत RBI का प्राथमिक उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है, बल्कि रुपए के मूल्य को संरक्षित करना है।

आगे की राह

  • सरकार को उम्मीद है कि वह इस साल अपने 3 प्रतिशत राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को RBI से प्राप्त धन की मदद से हासिल कर लेगी।
  • RBI से हस्तांतरित धन का प्रयोग सरकार द्वारा किसी राजकोषीय प्रोत्साहन योजना पर खर्च किया जा सकेगा, जो कि अर्थव्यवस्था में मंदी से निपटने के लिये सरकार को मदद करेगी।
  • RBI के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने पिछले साल चेतावनी दी थी कि जो सरकारें केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करती हैं, उन्हें अंततः अर्थव्यवस्था की कमज़ोर स्थिति का सामना करना पड़ता है।
  • देश के केंद्रीय बैंक RBI का इसी प्रकार सरकार की बढ़ती आवश्यकताओं की पूर्ति का एक साधन बन जाने पर विरल आचार्य द्वारा दी गई चेतावनी सच साबित हो सकती है।
  • इसका प्रभाव यह होगा कि रुपए को संरक्षित करने की RBI की क्षमता पर से अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों का विश्वास उठ जाएगा एवं भारत का विदेशी निवेश और अधिक कम हो जाएगा।
  • अतः केंद्र सरकार को देश के केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता को बरकरार रखते हुए मंदी से निपटने के अन्य रास्तों पर भी विचार करना चाहिये ताकि विदेशी निवेशकों का भरोसा भी बना रहे और अर्थव्यवस्था पुनः विकास की पटरी पर आ जाए।

स्रोत: द हिंदू


अमेरिका का स्पेस कमांड

चर्चा में क्यों?

हाल ही मे अमेरिकी राष्ट्रपति ने अंतरिक्ष युद्ध के लिये समर्पित एक स्पेस कमांड (Space Command) स्पेसकॉम (SpaceCom) की स्थापना की है।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि अमेरिका ने इस स्पेस कमांड की स्थापना अंतरिक्ष में चीन और रूस से होने वाले खतरों से बचाव हेतु की है।
  • यह स्पेस कमांड पेंटागन का 11वाँ पूर्ण कमांड और बीते दो वर्षों में स्थापित होने वाला दूसरा कमांड है।
    • इससे पूर्व वर्ष 2018 में साइबर युद्ध के खतरों को देखते हुए एक कमांड की स्थापना की गई थी।
  • अमेरिकी राष्ट्रपति ने संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना की छठी शाखा के रूप में संयुक्त राज्य अंतरिक्ष बल (United States Space Force) की स्थापना की भी घोषणा की।
    • गौरतलब है कि वर्तमान में अमेरिकी सेना की पाँच शाखाएँ हैं: आर्मी (Army), वायु सेना (Air Force), नौसेना (Navy) , मरीन (Marines) और तटरक्षक बल (Coast Guard)।
    • संयुक्त राज्य अंतरिक्ष बल स्पेसकॉम के लिये सैनिकों को प्रशिक्षित करने और उन्हें आधुनिक उपकरण उपलब्ध कराने में मदद करेगा।
  • अमेरिकी वायु सेना के पास पहले से ही एक समर्पित अंतरिक्ष युद्ध ऑपरेशन (Space Warfare Operation) है।
    • हालाँकि नवगठित स्पेस कमांड आधुनिक समय की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अंतरिक्ष युद्ध हेतु नई सुविधाएँ प्रदान करेगा।

गौरतलब है कि अमेरिकी अंतरिक्ष कमांड का गठन पहले भी किया गया था और वह वर्ष 1985 से 2002 के बीच कार्यान्वित था।

अंतरिक्ष की दौड़ में भारत भी है शामिल:

  • उल्लेखनीय है कि अंतरिक्ष की दौड़ में भारत भी दुनिया के अन्य देशों से पीछे नहीं है। हाल ही में भारत ने मिशन शक्ति के तहत स्वदेशी एंटी-सैटेलाइट मिसाइल (A-SAT) से एक लाइव भारतीय सैटेलाइट को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया था।
  • अंतरिक्ष में 300 किमी. दूर पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit-LEO) में घूम रहा यह लाइव सैटेलाइट एक पूर्व निर्धारित लक्ष्य था। इस मिशन के बाद भारत उन देशों की सूची में शामिल हो गया था जिनके पास अंतरिक्ष में किसी लाइव सैटेलाइट पर हमला करने की क्षमता है, ज्ञातव्य है कि अब तक रूस, अमेरिका और चीन के पास ही इस प्रकार की क्षमता थी।
  • साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में नए-युग की चुनौतियों का सामना करने के लिये भारत सरकार ने 2018 के अंत में तीन नई एजेंसियों - डिफेंस साइबर एजेंसी (Defence Cyber Agency), डिफेंस स्पेस एजेंसी (Defence Space Agency) और स्पेशल ऑपरेशंस डिविज़न (Special Operations Division) की स्थापना का निर्णय लिया था।

स्रोत: द हिंदू


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (02 September)

  • केंद्र सरकार की अनुशंसा पर राष्ट्रपति ने चार राज्यों में नए राज्यपालों की नियुक्ति की है तथा हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का तबादला किया गया है। राजस्थान, महाराष्ट्र, केरल और तेलंगाना में राज्यपालों को नियुक्त किया गया है और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल कलराज मिश्रा का ट्रांसफर कर उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया है। भगत सिंह कोशयारी को महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया है बंडारू दत्तात्रेय को हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। आरिफ मोहम्मद खान को केरल का राज्यपाल नियुक्त किया गया है तथा तमिलिसाई सौंदराजन को तेलंगाना का राज्यपाल बनाया गया है। गौरतलब है कि इससे पहले 22 जुलाई को चार राज्यों में नए राज्यपालों की नियुक्ति की गई थी तथा दो का तबादला कर दिया था। आपको बता दें कि केंद्र सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति के द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति की जाती है। भारतीय संविधान के भाग-6 में अनुच्छेद 153 से 167 तक राज्य कार्यपालिका के विषय में जानकारी दी गई है। राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है, तथा राज्यपाल केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है।
  • स्विट्जरलैंड में बैंक खाते रखने वाले भारतीय नागरिकों की जानकारी 1 सितंबर से भारत के टैक्स अधिकारियों को मिलने लगेगी। पिछले वर्ष भारत और स्विट्ज़रलैंड के बीच स्विस बैंकों में जमा धन के बारे में जानकारी साझा करने को लेकर बातचीत हुई थी, ताकि भारत यह पता लगा सके कि उसके यहाँ से कितना कालाधन विदेश जा रहा है। भारत और स्विट्ज़रलैंड के बीच हुए समझौते के तहत स्विस बैंक खाते वाले भारतीयों का विवरण आज से कर अधिकारियों को उपलब्‍ध होना शुरू हो जाएगा। केंद्रीय प्रत्‍यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के मुताबिक काले धन के खिलाफ यह महत्त्वपूर्ण कदम होगा और इससे स्विस बैंकों में खातों को लेकर गोपनीयता के युग का अंत हो जाएगा। इस साल लोकसभा में जून महीने में वित्तीय मामलों की स्थायी समिति की एक रिपोर्ट पेश की गई थी, इसके मुताबिक वर्ष 1980 से वर्ष 2010 के बीच 30 वर्षों के दौरान भारतीयों के ज़रिये लगभग 246.48 अरब डॉलर यानी 17,25,300 करोड़ रुपए से लेकर 490 अरब डॉलर यानी 34,30,000 करोड़ रुपए के बीच कालाधन देश के बाहर भेजा गया। विदित हो कि स्विट्ज़रलैंड के बैंकों को कालाधन छिपाने के लिये सबसे सुरक्षित माना जाता है।
  • मरुस्थलीकरण की समस्या से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोधी सम्मेलन (United Nations Convention to Combat Desertification-UNCCD) के कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज के 14वें सत्र (CoP 14) की शुरुआत 2 सितंबर को ग्रेटर नोएडा में हुई तथा यह 13 सितंबर तक चलेगा। इस सम्मेलन का उद्घाटन UNCCD के कार्यकारी सचिव इब्राहिम थिआ और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने किया। इस वैश्विक कार्यक्रम की मेज़बानी के साथ ही भारत CoP की अध्यक्षता भी चीन से हासिल करेगा और वर्ष 2021 तक इसका अध्यक्ष बना रहेगा। इस सम्मेलन में 196 देशों के 6000 से ज्यादा प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं जो मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे के पारस्परिक व्यवहार्य समाधान की तलाश पर चर्चा करेंगे। भूमि क्षरण से निपटने के लिये करीब 80 देशों के मंत्री, वैज्ञानिक, देशों और स्थानीय सरकारों के प्रतिनिधि, गैर-सरकारी संगठन, वैश्विक युवा नेटवर्कों से जुड़े लोग अपने अनुभव और विशेषज्ञता साझा करेंगे। गौरतलब हाई कि मरुस्थलीकरण भूमि क्षरण का ही एक प्रकार है जिसमें भूमि का अपेक्षाकृत सूखा इलाका मरुस्थल बन जाता है और वहाँ स्थित जलाशय, वनस्पति और वन्यजीव समाप्त हो जाते हैं। यह जलवायु परिवर्तन, मानव गतिविधियों द्वारा मृदा का अत्यधिक दोहन जैसे कई कारकों की वज़ह से होता है। UNCCD की देखरेख में मरुस्थलीकरण को लेकर चलाए जा रहे इस अभियान की शुरूआत वर्ष 1977 में हुई, लेकिन इनमें तेज़ी 1996 से आई, जब इसे लेकर दुनिया के सभी देशों ने एकजुट होकर काम करने की पहल की।
  • प्रौद्योगिकी क्षेत्र की विख्यात कंपनी गूगल ने बिल्ड फॉर डिजिटल इंडिया (Build for Digital India) कार्यक्रम शुरू करने के लिये इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ समझौता किया है। इस समझौते के तहत चलाया जाने वाला बिल्ड फॉर डिजिटल इंडिया कार्यक्रम इंजीनियरिंग छात्रों को एक ऐसा मंच उपलब्ध कराएगा जहाँ वे सामाजिक समस्याओं से निपटने वाले प्रौद्योगिकी आधारित बाज़ार के लिये तैयार समाधान को विकसित कर सकेंगे। यह पहल न केवल देशभर के कॉलेज छात्रों को प्रोत्साहित करेगी बल्कि देश की कुछ बड़ी सामाजिक चुनौतियों के लिये कुछ अच्छे प्रौद्योगिकी समाधान भी पेश करेगी। इसके तहत देशभर से इंजीनियरिंग छात्रों को स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा, स्मार्ट सिटी एवं अवसंरचना, महिला सुरक्षा, स्मार्ट परिवहन, पर्यावरण, दिव्यांगता एवं पहुँच और डिजिटल साक्षरता जैसे विषयों पर उनके विचार और समाधान पेश करने के लिये आमंत्रित किया जाएगा। इसके तहत प्रतिभागी मशीन लर्निंग, क्लाउड और एंड्राइड जैसी नई प्रौद्योगिकियों के लिये ऑनलाइन और ऑफलाइन सीखने के अवसरों को लाभ उठा सकेंगे। इसके अलावा गू्गल सबसे अधिक संभावना वाले उत्पाद एवं प्रोटोटाइप को उत्पाद डिज़ाइन, रणनीति और प्रौद्योगिकी में सिखाने वाले सत्र भी चलाएगा।