फॉल्स नेगेटिव: COVID-19 महामारी से जंग में बड़ी बाधा | 13 Apr 2020

प्रीलिम्स के लिये 

फॉल्स नेगेटिव, फॉल्स पॉज़िटिव

मेन्स के लिये 

COVID-19 महामारी से लड़ने में एक बाधा के रूप में ‘फॉल्स नेगेटिव’

संदर्भ

कई विश्लेषकों ने यह चिंता ज़ाहिर की है कि कुछ कोरोनावायरस (COVID-19) से संक्रमित रोगी स्वास्थ्य होने के पश्चात् पुनः वायरस से संक्रमित हो रहे हैं। कई अध्ययन में यह देखा गया है कि कुछ लोग नकारात्मक परीक्षण के बाद दूसरी बार उनके सकारात्मक होने की पुष्टि की गई। इस प्रकार की स्थिति चिकित्सा पेशेवरों के समक्ष गंभीर चुनौती उत्पन्न कर रही है। 

प्रमुख बिंदु

  • पुणे में 60 वर्ष से अधिक उम्र की एक महिला का पहला COVID-19 परीक्षण नकारात्मक था, किंतु परीक्षण के 3-4 दिनों बाद वह संक्रमण के कारण गंभीर रूप से बीमार हो गई और इसके प्रभावस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई।
  • विशेषज्ञों ने इस तथ्य से इनकार नहीं किया है कि इस प्रकार के संक्रमित व्यक्ति अपने पहले परीक्षण में भी वायरस से संक्रमित होते हैं, किंतु किन्ही कारणों से पहले परीक्षण में संक्रमण का पता नहीं लग पाता है।
  • वैज्ञानिक परीक्षण की दृष्टि से इसे ‘फॉल्स नेगेटिव’ (False Negative) कहा जाता है। इस प्रकार की स्थिति में व्यक्ति संक्रमित होते हुए भी उसका परीक्षण नेगेटिव आता है।

फॉल्स नेगेटिव के कारण 

  • फॉल्स नेगेटिव के विषय पर शोध करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि कोई भी लैब टेस्ट 100 प्रतिशत सही नहीं होता है।
  • आनुवंशिक पदार्थों की खोज पर आधारित परीक्षणों काफी हद तक संवेदनशील होते हैं इनके कभी-कभी इनके गलत होने की भी संभावना रहती है।
  • फॉल्स नेगेटिव का कारण यह हो सकता है कि परीक्षण के लिये जिन नमूनों का प्रयोग किया जाता हैं वे सही तरीके से नहीं लिये जाते हैं अथवा एक कारण यह भी हो सकता है कि परीक्षण सभी ढंग से नहीं किया जाता।
    • ऐसा भी हो सकता है कि परीक्षण के लिये नमूना जिस शरीर के जिस स्थान से लिया गया है, वायरस उस स्थान पर मौजूद ही नहीं है।
    • उदाहरण के लिये यदि संक्रमण फेफड़ों (Lungs) में है, तो नाक से लिये गए नमूनों से उसका पता नहीं लग सकता है।
  • कई अध्ययनों के अनुसार, परीक्षण हेतु लिये गए प्रारंभिक नमूने सदैव सटीक परीक्षण प्रदान करने के लिये पर्याप्त आनुवंशिक पदार्थ एकत्र नहीं कर सकता है। यह समस्या उन रोगियों के साथ होने की संभावना अधिक रहती है, जिनमें परीक्षण के समय कोई लक्षण नहीं होता है।
  • हालाँकि इस तरह के फॉल्स नेगेटिव (False Negative) परिणामों की वास्तविक व्यापकता को निर्धारित करने के लिये अभी भी काफी अधिक शोध किये जाने की आवश्यकता है, किंतु विशेषज्ञों का मत ​​है कि यह समस्या काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • फॉल्स नेगेटिव का एक अन्य कारण यह भी हो सकता है कि कोरोनावायरस के तीव्र प्रसार के परिणामस्वरूप परीक्षण किट निर्माता कंपनियों ने काफी जल्दबाज़ी में निर्माण कार्य किया है और कई प्रयोगशालाओं ने जल्दबाज़ी में परीक्षण किये हैं।
  • इसके अलावा परीक्षणों के लिये आपूर्ति और सामग्री की कमी, संक्रमण की पहचान के लिये लंबी रोगोद्भवन अवधि और रोगी से पर्याप्त नमूना प्राप्त करने की चुनौती आदि COVID-19 के परीक्षण को प्रभावित कर रहे हैं।
  • प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं के लिये भी COVID-19 परीक्षण हेतु नमूने एकत्रित करना अपेक्षाकृत काफी मुश्किल हो सकता है, जिसका प्रभाव स्पष्ट तौर पर परीक्षण पर पड़ता है।
  • अधिकांश परीक्षणों में नमूनों को संसाधित करने के लिये PCR नामक तकनीक का प्रयोग किया जाता है, जिसमें एक रोगी से प्राप्त नमूनों से राइबोन्यूक्लिक एसिड (Ribonucleic Acid) या RNA को अलग करना शामिल है, किंतु RNA अपेक्षाकृत काफी अस्थिर होता है।
  • नमूनों को संसाधित करने के लिये आवश्यक रसायनों की कमी भी COVID-19 परीक्षण को प्रभावित कर रही है, क्योंकि परीक्षण करने वाली प्रयोगशालाओं को प्रतिस्थापित रसायनों का प्रयोग करना पड़ रहा है।
  • अभी तक वैज्ञानिक COVID-19 परीक्षण के लिये सभी अवधि का पता नहीं लगा पाए हैं जिसका प्रभाव परीक्षण पर भी पड़ रहा है। उदाहरण के लिये फ्लू का परीक्षण तब अधिक प्रभावी होता है जब उसे शुरुआती लक्षणों के प्रदर्शन पर किया जाए।
    • COVID-19 की रोगोद्भवन अवधि काफी लंबी है और इस बारे में आँकड़ों की कमी है कि इस अवधि के दौरान संक्रमित होने की संभावना सबसे अधिक कब रहती है।

प्रभाव

  • फॉल्स नेगेटिव परिणाम न केवल व्यक्तिगत रोगियों में बीमारी के निदान और इसके प्रसार को रोकने में बाधा उत्पन्न कर सकता है। 
  • यह उन लोगों को भी जोखिम में डालता है जो इस प्रकार से संक्रमित लोगों के आस-पास रहते हैं, क्योंकि संक्रमित व्यक्ति को लगता है कि उसे कोई रोग नहीं है।
  • फॉल्स नेगेटिव परिणाम चिकित्सा पेशेवरों के समक्ष कोरोनावायरस महामारी से लड़ने में एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है।

सावधानी की आवश्यकता 

  • ध्यातव्य है कि चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में फॉल्स नेगेटिव दर से संबंधित अधिक आँकड़े मौज़ूद नहीं हैं, जिसके कारण देश-विदेश में रहे सभी परीक्षण इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के वैज्ञानिकों के अनुसार, यदि नमूना सही तरीके से प्राप्त या संसाधित नहीं किया जाता अथवा इस कार्य में बहुत जल्दबाज़ी की जाती है, तो संक्रमण के होते हुए भी परीक्षण नकारात्मक हो सकता है।
  • नेशनल इंस्टीट्यूट के अनुसार, सभी परीक्षण फॉल्स पॉज़िटिव (False Positive) और फॉल्स नेगेटिव (False Negative) त्रुटियों से ग्रस्त हैं।
    • वैज्ञानिक परीक्षण की दृष्टि से फॉल्स पॉज़िटिव (False Positive) का अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें संक्रमण न होते हुए भी परीक्षण में संक्रमण का पता लगता है।

COVID-19 महामारी और भारत 

  • COVID-19 वायरस मौजूदा समय में भारत समेत दुनिया भर में स्वास्थ्य और जीवन के लिये गंभीर चुनौती बना हुआ है। अब यह वायरस संपूर्ण विश्व में फैल गया है और दुनिया के लगभग सभी देश इसकी चपेट में आ गए हैं। 
  • WHO के अनुसार, COVID-19 में CO का तात्पर्य कोरोना से है, जबकि VI विषाणु को, D बीमारी को तथा संख्या 19 वर्ष 2019 (बीमारी के पता चलने का वर्ष ) को चिह्नित करता है।
  • कोरोनावायरस (COVID -19) का प्रकोप तब सामने आया जब 31 दिसंबर, 2019 को चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर में अज्ञात कारण से निमोनिया के मामलों में हुई अत्यधिक वृद्धि के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन को सूचित किया गया।
  • नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, दुनिया भर में इसके कारण अब तक 114000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है और तकरीबन 18 लाख लोग इसकी चपेट में हैं। 
  • भारत में भी स्थिति काफी गंभीर है और इस खतरनाक वायरस के कारण अब तक देश में 300 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है तथा में 9000 से अधिक लोग इसकी चपेट में हैं।
  • भारत समेत दुनिया भर की सरकारों ने इस वायरस निपटने के लिये अपने तमाम तरह के उपायों में घोषणा की है। भारत में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस वायरस के प्रसार को रोकने के लिये 21-दिवसीय लॉकडाउन की घोषणा की थी, जिसे मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए और अधिक बढ़ाने पर विचार किया जा सकता है।
  • इस सब के बीच पहले से ही गंभीर स्थिति से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष भी एक गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है, जिससे निपटने के लिये वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में 1.7 लाख रुपए के पैकेज की घोषणा की थी।

आगे की राह

  • चिकित्सकीय शोधकर्त्ताओं के अनुसार, किसी भी नकारात्मक परीक्षण का अर्थ यह नहीं होता कि  व्यक्ति किसी बीमारी से संक्रमित नहीं है, अतः आवश्यक है कि रोगी की COVID-19 विशेषताओं और जोखिम को भी इस संदर्भ में विशेष महत्त्व दिया जाए।
  • विभिन्न स्वास्थ्य संगठनों और संस्थानों को फॉल्स पॉज़िटिव (False Positive) और फॉल्स नेगेटिव (False Negative) त्रुटियों के संबंध में अधिक-से-अधिक शोधों और अध्ययनों का आयोजन करना चाहिये, ताकि COVID -19 महामारी से निपटने हेतु इस बाधा को समाप्त किया जा सके।
  • COVID-19 महामारी से लड़ रहे स्वास्थ्य कर्मियों को इस संदर्भ में प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये, ताकि वे नमूनों को सही ढंग से एकत्रित कर सकें।
  • इस महामारी का सामना करने के लिये विभिन्न देशों के स्वास्थ्य प्रणाली को काफी अधिक मात्रा में संसाधनों की आवश्यकता है, इसीलिये यह वहाँ की सरकारों का दायित्त्व है कि वे स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के साथ-साथ उन्हें आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस