दिल्ली-एनसीआर वायु प्रदूषण : समन्वय की आवश्यकता | 02 Nov 2020

वायु प्रदूषण केवल दिल्ली और उसके निगमों की ही समस्या नहीं रह गई है बल्कि इस समस्या में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) भी शामिल है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के अनुसार इस समस्या से निपटने के लिये  केंद्र और चार एनसीआर राज्यों को मिलकर काम करना होगा। 

प्रदूषण का यह एक बड़ा एयरशेड है जिसमें गुरुग्राम, फरीदाबाद, गाजियाबाद, नोएडा एवं उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से, हरियाणा और यहाँ तक कि राजस्थान का अलवर क्षेत्र भी शामिल है।

भूगोल में एयरशेड (Airshed) को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया गया है जो वायुमंडलीय प्रदूषकों के प्रसार के संबंध में सामान्य विशेषताएँ साझा करता है। दूसरे शब्दों में कहे तो एक ऐसा क्षेत्र जो हवा के सामान्य प्रवाह को साझा करता हो एयरशेड कहलाता है। विशेषज्ञों के अनुसार दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने के लिये किये गए उपायों को पूरे एनसीआर में लागू करने की आवश्यकता है क्योंकि एनसीआर क्षेत्र वही एयरशेड साझा करते हैं जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र करती है। पर्यावरण मंत्री के अनुसार केंद्र ने दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने हेतु कई कदम उठाए हैं, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी के आसपास पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे को खोलना भी शामिल है। गैर-दिल्ली में यातायात के भीड़ को कम करने और निर्माण एवं विध्वंस से उत्पन्न मलबे के प्रबंधन संबंधी नियमों को भी लाया जा रहा है जिसका प्रबंधन अगर सही से न किया गया तो वे धूल-कण के स्रोत भी बन सकते हैं।

दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की लगतार बढ़ती समस्या से निपटने के लिये केंद्र ने एक अध्यादेश के माध्यम से एक नया कानून पेश किया है जो तत्काल प्रभाव से लागू होगा। प्रावधानों का उल्लंघन करने पर पाँच साल जेल की सजा या एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना या दोनों का प्रावधान किया गया है। इस अध्यादेश को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एवं संलग्न क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु आयोग अध्यादेश, 2020 का नाम दिया जा सकता है। यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आस-पास के क्षेत्रों में भी लागू होगा जहाँ के मामले वायुप्रदूषण से संबंधित होंगे।

गौरतलब है कि इन दिनों कोविड-19 के दौरान किये गए लॉकडाउन को सरकार द्वारा फिर से खोला जा रहा है। ऐसे में दिल्ली एवं इसके आस-पास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण के स्तर में पुन: वृद्धि होना स्वाभाविक है। साथ ही ठंड के मौसम के आते ही इसके गंभीरता में और वृद्धि हो जाती है। दिल्ली और उसके आसपास वायु प्रदूषण के विषाक्तता का उच्च स्तर काफी गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है। इस गंभीरता को मौसम की बदलती परिस्थितियों ने और भी बदत्तर बना दिया है। बदलते मौसम ने प्रदूषकों को हवा के घेरे में कैद कर स्थिति को और खराब कर दिया है।

अब सबसे पहले उन कारणों पर प्रकाश डालते हैं जो इस बढ़ते प्रदूषण के पीछे है-

  1. गौरतलब है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों के साथ अपनी सीमा साझा करती है। दिल्ली में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर का एक मुख्य कारण इन राज्यों में किसानों द्वारा फसलों को जलाया जाना भी है। इन किसानों द्वारा पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फसल के अवशेष एवं चावल के भूसे जलाएं जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक लगभग 35 मिलियन टन फसल इन राज्यों द्वारा प्रत्येक वर्ष जलाएँ जाते हैं। पवन इन सभी प्रदूषकों और धूल कणों को अपने साथ ले जाती है जो हवा में कैद हो जाते हैं।
  2. दिल्ली में ट्रैफिक की बढ़ती संख्या से उत्पन्न प्रदूषण वायु प्रदूषण का  अन्य कारण  माना जाता है। इस वायु प्रदूषण एवं स्मॉग के  कारण वायु गुणवत्ता सूचकांक अक्सर ‘गंभीर स्तर’ पर पहुँच जाता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI) ने वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को दिल्ली के बढ़ते हुए वायु प्रदूषणके लिए एक प्रमुख उत्तरदायी कारक के रूप में घोषित किया है।
  3. एक अन्य कारण के रूप में हम देखते हैं कि  सर्दियों के मौसल के आते  ही हवा में धूल कण एवं अन्य प्रदूषक स्थिर हो जाते है और अन्य जगह विस्तारित नहीं हो पाते। स्थिर हवाओं के कारण ये प्रदूषक हवा में बंद हो जाते हैं और मौसम की स्थिति को प्रभावित करते हैं; जिसके परिणामस्वरूप स्मॉग का निर्माण होता है।
  4. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु-प्रदूषण का एक और कारण अधिक जनसंख्या का पाया जाना है। सीमा से अधिक जनसंख्या के कारण विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों में वृद्धि होती है, चाहे वो वायु प्रदूषण हो या ध्वनि प्रदूषण।
  5. सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे में कम निवेश को भी वायु प्रदूषण के अन्य कारणों में से एक बताया गया है। भारत में सार्वजनिक परिवहन और बुनियादी ढाँचे के क्षेत्र में निवेश काफी कम है जिससे सड़कों में ट्रैफिक जाम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और वायुप्रदूषण में बढ़ोत्तरी होती है।
  6. दिल्ली-एनसीआर में बड़े पैमाने पर होने वाले निर्माण कार्य भी अन्य दोषी हे जो वायु में धूल एवं प्रदूषण में वृद्धि करता है। वायु गुणवत्ता में गिरावट के मद्देनज़र दिल्ली सरकार के दिशा-निर्देशों के तहत कई निर्माण स्थलों पर काम रोक दिये गए हैं।
  7. औद्योगिक प्रदूषण एवं कचरे के ढेर भी दिल्ली एवं एनसीआर क्षेत्रों में वायुप्रदूषण एवं  स्मॉग को बढ़ा रहे हैं।
  8. दिल्ली एवं इसके आस-पास के क्षेत्रों में प्रत्येक वर्ष दिवाली के अवसर पर होने वाले पटाखा बिक्री (प्रतिबंध के बावजूद) शायद धुंध हेतु जिम्मेदार शीर्ष कारण न हो लेकिन यह इसके निर्माण में निश्चितरूपेण योगदान देता है।

अगर वायु प्रदूषण पर बात की जाए तो वायुमंडल में एक या अधिक प्रदूषकों की मात्रा जब इतनी अधिक बढ़ जाती है जिससे वायु की गुणवत्ता में हृास होने लगता हे और वह जब समुदाय के लिये हानिकारक हो जाए तो, वायु प्रदूषण कहलाता है।

उत्पत्ति के आधार पर वायु प्रदूषकों को दो प्रमुख प्रकारों में विभाजित किया जाता है-

  1. प्राकृतिक प्रदूषक (Natural Pollutants) : ये प्रदूषक प्राकृतिक स्रोतों से अथवा प्राकृतिक व्रियाकलापों से निकलते हैं। जैसे- पौधों के परागकण और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक, ज्वालामुखी विस्फोट तथा जैविक पदार्थों के सड़ने से निकलने वाली गैसें। सामान्यत: प्राकृतिक निष्कासनों की सांद्रता कम होती है और उनसे गंभीर हानि नहीं होती।
  2. मानवजनित प्रदूषक (Secondary Pollutants) : सूर्य के विद्युतचुम्बकीय विकिरणों के प्रभाव के अधीन प्राथमिक प्रदूषकों तथा सामान्य वायुमंडलीय यौगिकों के मध्य रासायनिक अभिव्रियाओं के परिणामस्वरूप द्वितीयक प्रदूषक का निर्माण होता है।

उदाहरणस्वरूप: प्राथमिक प्रदूषक सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) वायुमंडल की ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया करके सल्फर डाईऑक्साइड (SO3) बनाती हे जो एक द्वितीयक प्रदूषक है। 

प्रमुख वायु प्रदूषक

  • कार्बन मोनोऑक्साइड (CO)
  • कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)
  • मिथेन (CH4)
  • क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs)
  • सल्फर डाइऑक्साइड (SO2)
  • नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2)
  • सीसा (Lead)
  • वाष्पशील कार्बनिक पदार्थ (VOc)
  • धरातलीय ओजोन (O3)
  • हाइड्रोकार्बन 
  • प्रकाश रासायनिक ऑक्सीडेन्ट्स- PANs C2H4O
  • निलम्बित कणिकीय पदार्थ (आकार: 0.01um – 200um

सरकार द्वारा दिल्ली के वायु-प्रदूषण से निपटने हेतु उठाए जा रहे कारगर कदम-

  • पूर्वी एवं पश्चिमी परिधीय एक्सप्रेस-वे का निर्माण, जिसने हर दिन दिल्ली से गुजरने वाले 60,000 निर्विवाद भारी वाहनों (ट्रकों) को रोककर प्रदूषण को कम किया है।
  • बदरपुर बिजली संयंत्र को बंद करा दिया गया जिससे प्रदूषण में सीधे तौर पर कमी आई।
  • 65,000 करोड़ के निवेश के साथ BS-VI मानक अनुपालन वाले वाहनों और ईंधनों को लाने से वाहनों द्वारा होने वाले प्रदूषण में काफी हक तक कमी आई।
  • पंजाब और हरियाणा के किसानों हेतु 1400 करोड़ रू. की भूसा काटने की मशीनों उपलब्ध कराई गई जिसके परिणामस्वरूप स्टबल बर्ऩिग से होने वाले प्रदूषण में पंजाब और हरियाणा में व्रमश: 15 और 20 प्रतिशत की कमी आई।
  • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में 2,800 ईट के भट्टों में जिग-जैग तकनीक अपनाई गई जिसके परिणामस्वरूप प्रदूषण में काफी कमी आई।
  • एनसीआर के 2600 उद्योगों को पाइप्ड नेचुरल गैस (पीएनजी) उपलब्ध कराया गया है।
  • 2016 में पहली बार निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट प्रबंधन नियम शुरू किये गए जिससे धूल एवं प्रदूषण में काफी कमी आई।
  • दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा धूल दबाने और पानी के छिड़काव करने वाले सैकड़ों वाहन उपलब्ध कराए गए।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने स्मॉग और प्रदूषण के खतरनाक प्रभावों से बचाव हेतु कुछ दिशा-निर्देश जारी किये हैं-

जब सर्दियों में वायु-प्रदूषण के स्तर में ज्यादा वृद्धि हो जाती है तो लोगों को घर के अंदर रहने की सलाह दी जाती है और बाहर निकलने से मना किया जाता है। सुबह या शाम में बाहरी क्रियाकलापों को करने की बात कही जाती है। स्मोकिंग से बचाव एवं कचरे को जलाने से बचने को कहा जाता है। खूब पानी पीने की सलाह दी जाती है ताकि शरीर से विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाए। विटामिन c, मैगनीशियम एवं ओमेगा फैटी एसिड से भरपूर फलों के सेवन  की हिदायद दी जाती है ताकि रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि हो। मुख्य सड़कों के इस्तेाल को मना किया जाता है ताकि लोग प्रदूषण कणों से दूर रह सकें।

उपर्युक्त सभी चिंताओं के मद्देनजर उम्मीद की जा रही है कि नया आयोग वायु गुणवत्ता पर निरंतर ध्यान रखते हुए अंतर-विभागीय समन्वय संबंधी समस्याओं का हल करने में मदद कर सकता है। परंतु समान रूप से यह भी तय है कि विकास के स्पष्ट मापदंड और  समाधान के रचनात्मक तरीकों के बिना यह पुराने गतिरोधों को पुन: उत्पन्न कर सकता है। नया आयोग एक नौकरशाही पतीले के समान है, जिसका प्रभाव इसमें डाली गई सामग्री पर निर्भर करेगा और साथ ही उसे कैसे चलाया जा रहा है, इस पर निर्भर करेगा। देखा जाए तो यह एक बहुत ही स्वागत योग्य कदम है, जिसकी बहुत ज्यादा आवश्यकता थी। क्योंकि मुख्य समस्या यह थी कि दिल्ली से सटे विभिन्न राज्यों के मध्य समन्वय कैसे किया जाए। वर्तमान में कोई भी निकाय, प्राधिकरण, मंत्रालय था राज्य नहीं था जो ऐसा करने में सशक्त या उसके प्रति समर्पित हो। यह अध्यादेश अमेरिका द्वारा कैलिफोर्निया में उठाए गए कदम से सीखने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

वायु प्रदूषण से निपटने हेतु राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है जिसकी अक्सर कमी देखने को मिली है। फिलहाल यह नहीं देखना है कि नया आयोग EPCA, CBCB जैसे मौजूदा निकायों से कैसे अलग है? जरूरत यह है कि सभी राज्यों के मुख्यमंत्री के प्रतिनिधित्व के साथ केंद्रीय पर्यावरण मंत्री की अध्यक्षता में एक निकाय हो जो नियमित रूप से बैठकें करे और समयबद्ध कार्य योजना पर सहमत हो। लक्ष्य को तय करते हुए जिम्मेदारियों का निर्वहन आवश्यक है अन्यथा एक कमीशन से दूसरे कमीशन तक सिर्फ आरोप और जिम्मेदारियाँ स्थानांतरित किये जाएंगे एवं परिणाम समान होंगे।