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ईरान न्यूक्लियर डील से वैश्विक संकट | 13 Oct 2018 | अंतर्राष्ट्रीय संबंध

हाल ही में पूरी दुनिया तब हैरान हो गयी जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने वर्ष 2015 में ईरान के साथ हुए परमाणु डील से अमेरिका के हट जाने का ऐलान किया वर्ष 2015 में, लंबे समय की कूटनीतिक पहल के बाद जब ईरान के साथ अमेरिका सहित अन्य पाँच देशों का परमाणु करार हुआ था, तब पूरी दुनिया ने राहत की साँस ली थी तब इस बात की उम्मीद की गयी थी कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम से पैदा हुए अंतर्राष्ट्रीय तनाव से उबर कर पूरा विश्व समुदाय फिर से ईरान के साथ अपने आर्थिक संबंध को बेहतर कर सकेगा लिहाज़ा, ऐसा ही हुआ परिस्थितियाँ सामान्य हुईं और पूरा विश्व एक बार फिर से विकास के मार्ग पर अग्रसर हो गया लेकिन, डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा इस परमाणु करार को तोड़ने से पुनः एक अंतर्राष्ट्रीय संकट की आशंका पैदा हो गयी है इसी कारण, ईरान के साथ यह परमाणु डील फिर से चर्चा का विषय बनी हुई है

इस लेख में हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि ईरान परमाणु डील क्या है? परमाणु अप्रसार संधि क्या है? इस परमाणु समझौते से बाहर होने के पीछे अमेरिका की क्या रणनीति है? हम जानेंगे कि परमाणु डील के कमज़ोर पड़ने से भारत, मध्य पूर्व एशिया और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पर क्या प्रभाव पड़ेगा और इस पूरे घटनाक्रम में भारत की क्या रणनीति होनी चाहिये 

ईरान परमाणु डील क्या है?

एनपीटी यानी अप्रसार संधि क्या है?

ईरान परमाणु समझौता से बाहर होने के पीछे अमेरिका के क्या तर्क हैं?

इस समझौते से अमेरिका के बाहर हो जाने से भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

निष्कर्ष

राष्ट्रपति ट्रम्प के इस कदम से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर अनिश्चित्ता के बादल मंडराने लगे हैं दरअसल, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने कई चुनौतियाँ खड़ी हो गयी हैं पहली और सबसे बड़ी चुनौती यह है कि अमेरिका का यह फैसला अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में गुटबाजी को न्यौता देने जैसा है जहाँ एक तरफ अमेरिका के इस कदम का इज़राइल और सऊदी अरब समर्थन कर रहे हैं, वहीं अमेरिका के मित्र राष्ट्र ब्रिटेन और फ्रांस समेत चीन और रूस अमेरिका के इस कदम का विरोध कर रहे हैं इस बात की आशंका प्रबल हो गयी है कि अगर अमेरिका के रूख में नरमी नहीं आई और आगे भी अमेरिका अगर इसी तरह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के हित की अनदेखी करता रहा तो इसकी परिणति एक विश्वयुद्ध के रूप में हो सकती है साथ ही, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उत्तरी कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग की आगामी जून में प्रस्तावित बैठक पर भी अनिश्चितता पैदा हो गयी है, इससे भी अंतर्राष्ट्रीय शांति की उम्मीदों को झटका लग सकता है जहाँ रूस और चीन ईरान के साथ खड़े नज़र आ रहे हैं, वहीं ईरान सीरिया के शासक बशर अल असद की खुल कर मदद भी करता रहा है और ईरान की इस पहल का इजराइल और अमेरिका विरोध करता रहा हैI ईरान और सऊदी अरब की बात करें तो शिया-सुन्नी विवाद को लेकर दोनों के संबंध पहले से ही खराब हैं जबकि अमेरिका हमेशा ही सऊदी अरब का हिमायती रहा है

इसके अलावा, ईरान फिलिस्तीन, लेबनानी शियाओं को भी सहायता करता रहा है लिहाज़ा, मध्य-पूर्व एशिया में तनाव बढ़ने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय देशों में भी तनाव बढ़ने की आशंका है। अगर आर्थिक परिस्थितियों की बात करें तो, इस मुद्दे पर भी समस्या खड़ी होने वाली हैI एक तरफ ईरान से कच्चा तेल खरीदने वाले सभी देश प्रभावित होंगे तो दूसरी तरफ दूसरे कारोबार करने वाली विभिन्न विदेशी कंपनियों का भी हित प्रभावित होगा दरअसल, इस डील में शामिल रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी की कंपनियों ने भी ईरान में अपना निवेश किया हुआ है और अगर अमेरिका ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाता है तो ये सभी कारोबार बंद हो जायेंगे और नतीजतन इन कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ेगा, यही कारण है कि इस डील में शामिल दूसरे देश डील में बने रहना चाहते हैं। अब सवाल है कि इस बदली परिस्थिति में भारत का क्या रुख होगा दरअसल, भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का जन्मदाता है और इसलिए वह हमेशा से ही गुटनिरपेक्षता का पक्षधर रहा है ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि भारत गुटबाजी से दूर ही रहने वाला है जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया कि अमेरिका और ईरान दोनों ही भारत के बड़े व्यापारिक साझीदार देश हैं इतना ही नहीं, अमेरिका और ईरान दोनों से ही भारत के बेहतर कूटनीतिक संबंध भी हैं ऐसे में भारत को चाहिए की वह अपनी परिपक्व कूटनीति का परिचय देते हुए अमेरिका और ईरान के साथ संतुलन बनाये रखे भारत अगर संतुलन नहीं बना पाता है तो आर्थिक और भू-राजनीतिक रूप से भारत को नुकसान उठाना पड़ सकता है। एक ऐसे समय में जब भारत महाशक्ति बनने की राह पर है तब भारत द्वारा ऐसी पहल करने की ज़रूरत है जिससे अंतर्राष्ट्रीय पटल पर उभरे इस मतभेद को ख़त्म किया जा सके। अगर भारत अपनी मध्यस्थता से कुछ बेहतर कर पाता है तो यकीनन वह अपनी कूटनीतिक परिपक्वता का लोहा मनवा पाएगा और अंतर्राष्ट्रीय पटल पर एक नई इबारत भी लिख सकेगा।

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