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प्रश्न. ईमानदारी से आप क्या समझते हैं? उचित उदाहरणों की सहायता से शासन में इसके महत्त्व को स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)

17 Dec 2021 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • ईमानदारी पद को परिभाषित कीजिये।
  • प्रासंगिक उदाहरणों के साथ शासन में इसके महत्त्व को बताइये।
  • शासन में ईमानदारी से जुड़ी कुछ चुनौतियों को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

ईमानदारी से तात्पर्य उस नैतिक व्यवहार से है जो कि पूरी निष्पक्षता, जवाबदेही, पारदर्शिता एवं सत्यनिष्ठा के साथ किसी व्यक्ति को अपने कर्त्तव्य पालन हेतु प्रेरित करता है तथा सार्वजनिक मूल्यों को बनाए रखता है। लोक सेवा में ईमानदारी का अर्थ व्यापक है जिसमें न्यायनिष्ठा, सत्यनिष्ठा तथा स्पष्टवादिता जैसे सद्गुणों को शामिल किया जाता है। यह लोक सेवकों को भ्रष्ट व स्वकेंद्रित होने से बचाता है तथा जनोन्मुखी शासन की अवधारणा का विकास करता है।

सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी का सिद्धांत सुशासन हेतु प्राथमिक शर्त है जो कि सतत् विकास लक्ष्यों का केंद्र- बिंदु है एवं शासन में भ्रष्ट आचरणों तथा कदाचारों का निषेध करता है। शासन को प्रभावी एवं कुशल बनाने तथा सामाजिक-आर्थिक विकास करने के लिये लोक सेवाओं में ईमानदारी अत्यावश्यक है। संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन अगेंस्ट करप्शन ने भी सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया है।

  • शासन में ईमानदारी के महत्त्व को निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है-
    • शासन में कदाचार, धोखाधड़ी तथा भ्रष्टाचार जैसी अनैतिक प्रथाओं पर अंकुश लगाने एवं सार्वजनिक मशीनरी में जनता के विश्वास को बढ़ाने में।
    • शासन में सार्वजनिक हितों को सुनिश्चित करने तथा जन सहयोग को बढ़ावा देने के लिये।
    • समाज के सभी वर्गों की आवश्यकताओं की पूर्ति तथा समावेशी विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये।
    • संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करने व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि को सुधारने हेतु।
    • शासन में जवाबदेहिता, पारदर्शिता, वस्तुनिष्ठता आदि लाकर सुशासन का मार्ग प्रशस्त करने में।
  • उपर्युक्त लाभों के बावजूद शासन में ईमानदारी लाने के मार्ग में कई चुनौतियाँ विद्यमान हैं जिन्हें निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है-
    • पारदर्शिता एवं जवाबदेहिता की अनुपस्थिति।
    • समाज में नैतिक मूल्यों का क्रमिक पतन।
    • अव्यावहारिक आचार संहिताओं की उपस्थिति।
    • लचर कानून व्यवस्था एवं संस्थागत तंत्र।
    • राजनीतिक दलों व नौकरशाहों में अनैतिक गठजोड़ का होना।
    • वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप भौतिकतावाद का विकास।
    • धीमा एवं अनैतिक न्याय वितरण तंत्र

इस प्रकार देखा जाए तो शासन में ईमानदारी लाने के मार्ग में कई चुनौतियाँ विद्यमान हैं किंतु शासन में नैतिक मूल्यों, जैसे- जवाबदेहिता, वस्तुनिष्ठता, सत्यनिष्ठा, न्यायनिष्ठता आदि का समावेशन कर इन चुनौतियों को कम किया जा सकता है तथा सुशासन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।