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प्रश्न. भारत में भूमि सुधारों की दिशा में किये गए प्रयास अत्यधिक धीमे रहे हैं। भारत में भूमि सुधारों की मंद प्रगति के कारणों की चर्चा कीजिये।

08 Dec 2021 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारत में भूमि सुधार एवं उसके प्रमुख घटकों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • भूमि सुधारों की कमज़ोर प्रगति के कारणों को बताइये।
  • आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

भारत की स्वतंत्रता के समय भूमि का वितरण अत्यधिक असमान एवं विकृत था। भूमि का स्वामित्व कुछ ही लोगों के पास था जिसमें ग्रामीण भारत का सामाजिक-आर्थिक विकास बाधित रहा तथा किसानों का शोषण बढ़ा। स्वतंत्रता के पश्चात् भू-स्वामित्व में सुधार, भूमि के समवितरण, मध्यस्थों का उन्मूलन, काश्तकारी सुधार, चकबंदी, प्रति परिवार भूमि की सीमा का निर्धारण तथा अधिशेष भूमि को भूमिहीनों के बीच वितरित करने के उद्देश्य से भारत में भूमि सुधार कार्यक्रम प्रारंभ किया गया।

भारत में भूमि सुधार के प्रमुख घटक इस प्रकार हैं-

  • बिचौलियों की समाप्ति।
  • काश्तकारों को प्रत्यक्ष भू-स्वामित्व प्रदान करना।
  • भूराजस्व का निमयन।
  • जोतों की चकबंदी।
  • सहकारी कृषि को प्रारंभ करना।
  • भूमि संबंधी आँकड़ों का डिजिटलीकरण तथा उन्नतीकरण।

वस्तुत: भूमि सुधारों के उद्देश्य अत्यधिक प्रगतिशील होने के बावजूद इन सुधारों की गति अत्यधिक धीमी व मंथर है जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  • कृषकों व सरकार के बीच बिचौलियों की उपस्थिति।
  • भू-धृति की अपर्याप्त सुरक्षा, दृढ़ संकल्पित नीति तथा राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव।
  • भूमि संबंधी किराए की उच्च दरों का निर्धारण तथा भूमि संबंधी प्रोत्साहनों का अभाव।
  • भू-धारिताओं का बड़े पैमाने पर विखंडन तथा खेती की आधुनिक-वैज्ञानिक पद्धतियों को अपनाने से उत्पन्न बाधाएँ।
  • भूमि का असमान वितरण एवं प्रति हेक्टेयर उत्पादकता का अत्यधिक निम्न होना।
  • हरित क्रांति के परिणामस्वरूप अमीर एवं गरीब के बीच बढ़ती असमानता।
  • सही और अपडेटेड भू-आँकड़ों की अनुपस्थिति तथा सरकारी वित्तीय सहायता की अत्यल्प उपलब्धता।
  • राज्य सरकारों द्वारा भूमि समेकन कानून के क्रियान्वयन को अन्य अधिनियमों की तुलना में कम महत्त्व दिया जाना।

वर्तमान समय में भारतीय कृषि अपने परंपरागत अर्द्ध-सामंती चरित्र तथा उभरते आधुनिक वैज्ञानिक पद्धतियों के बीच संक्रमण की अवस्था में है। ऐसे बदलते परिदृश्य में भूमि सुधारों के महत्त्व को समझना चाहिये जिसके लिये राजनीतिक-प्रशासनिक प्रतिबद्धता का होना अति आवश्यक है जिसके लिये पुराने भू-स्वामित्व संबंधी कानूनों में व्यावहारिक बदलाव लाए जाने की ज़रूरत है। इसके लिये, भूस्वामी-पट्टाधारकों के अवैधानिक साँठ-गाँठ को तोड़ते हुए कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन कर, कानूनी प्रक्रियाओं को सरल बनाकर, अधिशेष भूमि का समवितरण सुनिश्चित कर, भूधारिता तथा भूमि रिकॉर्ड को अद्यतित तथा डिजिटलाइज़्ड किये जाने की आवश्यकता है।

उपर्युक्त प्रक्रियाओं के माध्यम से भारत में भूमि सुधारों को उचित गति प्रदान की जा सकती है जिससे भूमि का समवितरण सुनिश्चित किया जा सकेगा तथा कृषि की आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकियों का प्रयोग कर उत्पादन में वृद्धि की जा सकेगी।