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प्रश्न : ब्रिक्स एक सीमा तक सफल रहा है, लेकिन भू-राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन के कारण अब उसे विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। चर्चा कीजिये।

10 Dec 2021 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

  • ब्रिक्स समूह की सफलता के बारे में लिखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
  • नई भू-राजनीतिक व्यवस्था में ब्रिक्स के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
  • भविष्य में समूह की प्रासंगिकता और उपयोगिता बनाए रखने के लिए आगे की राह सुझाइये।

परिचय

ब्रिक्स विश्व की 42% जनसंख्या, 30% भूमि क्षेत्र, 24% वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद और 16% अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रतिनिधित्व करता है। इसने वैश्विक उत्तर और वैश्विक दक्षिण के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करने का प्रयास किया है।

BRICS ने बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार का आह्वान किया ताकि वे वैश्विक अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तनों और उभरते हुए बाज़ारों की बढ़ती केंद्रीय भूमिका को प्रतिबिंबित कर सकें।

प्रारूप

ब्रिक्स के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ

  • विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त: समूह के समक्ष संघर्ष की कई स्थितियाँ मौजूद रही हैं। जैसे, पिछले वर्ष पूर्वी लद्दाख में चीन की आक्रामकता से भारत-चीन संबंध पिछले कई दशकों में अपने निम्नतम स्तर पर आ गया है।
    • चीन और रूस के तनावपूर्ण संबंधों और ब्राज़ील एवं दक्षिण अफ्रीका में व्याप्त गंभीर आंतरिक चुनौतियाँ जैसी वास्तविकताओं का सामना भी यह समूह कर रहा है।
    • इधर दूसरी ओर कोविड-19 के कारण वैश्विक स्तर पर चीन की छवि खराब हुई है। इस पृष्ठभूमि में ब्रिक्स की प्रासंगिकता संदेहास्पद बनी है।
  • विषम जातीयता (Heterogeneity): आलोचकों द्वारा यह दावा किया जाता है कि ब्रिक्स राष्ट्रों की विषम जातीयता (सदस्य देशों की परिवर्तनशील/भिन्न प्रकृति), जहाँ देशों के अपने अलग-अलग हित हैं, से समूह की व्यवहार्यता को खतरा पहुँच रहा है।
  • चीन-केंद्रित समूह: ब्रिक्स समूह के सभी देश चीन के साथ एक-दूसरे की तुलना में अधिक व्यापार करते हैं, इसलिये इसे चीन के हित को बढ़ावा देने के लिये एक मंच के रूप में दोषी ठहराया जाता है। चीन के साथ व्यापार घाटे को संतुलित करना अन्य साझेदार देशों के लिये एक बड़ी चुनौती है।
  • शासन के लिये वैश्विक मॉडल: वैश्विक मंदी, व्यापार युद्ध और संरक्षणवाद के बीच, ब्रिक्स के लिये एक प्रमुख चुनौती शासन के एक नए वैश्विक मॉडल का विकास करना है जो एकध्रुवीय नहीं हो, बल्कि समावेशी और रचनात्मक हो।
    • लक्ष्य यह होना चाहिये कि प्रकट हो रहे वैश्वीकरण के नकारात्मक परिदृश्य से बचा जाए और विश्व की एकल वित्तीय तथा आर्थिक सातत्य को विकृत किये या तोड़े बिना वैश्विक उभरती अर्थव्यवस्थाओं का एक जटिल विलय शुरू किया जाए।
  • घटती प्रभावकारिता: पाँच शक्तियों का यह गठबंधन सफल रहा है, लेकिन एक सीमा तक ही। चीन के वृहत आर्थिक विकास ने ब्रिक्स के अंदर एक गंभीर असंतुलन पैदा कर दिया है। इसके अलावा, समूह ने वैश्विक दक्षिण की सहायता के लिये पर्याप्त प्रयास नहीं किया है, ताकि अपने एजेंडे के लिये उनका इष्टतम समर्थन हासिल कर सके।

आगे की राह

  • समूह के भीतर सहयोग: ब्रिक्स को चीन की केंद्रीयता के त्याग के साथ एक बेहतर आंतरिक संतुलन के निर्माण की आवश्यकता है, जो क्षेत्रीय मूल्य शृंखलाओं के विविधीकरण और सशक्तिकरण की तत्काल आवश्यकता से प्रबलित हो (जिसकी आवश्यकता महामारी के दौरान उजागर हुई है)।
    • नीतिनिर्माता कृषि, आपदा प्रत्यास्थता (disaster resilience), डिजिटल स्वास्थ्य, पारंपरिक चिकित्सा और सीमा शुल्क संबंधी सहयोग जैसे विविध क्षेत्रों में इंट्रा-ब्रिक्स सहयोग (intra-BRICS cooperation) में वृद्धि को प्रोत्साहित करते रहे हैं।
    • ब्रिक्स ने अपने पहले दशक में साझा हितों के मुद्दों की पहचान करने और इन मुद्दों के समाधान के लिये एक मंच के निर्माण के रूप में अच्छा प्रदर्शन किया था।
    • अगले दशकों में ब्रिक्स के प्रासंगिक बने रहने के लिये, इसके प्रत्येक सदस्य को इस पहल के अवसरों और अंतर्निहित सीमाओं का यथार्थवादी मूल्यांकन करना चाहिये।
  • बहुपक्षीय विश्व के लिये प्रतिबद्धता: ब्रिक्स देशों को अपने दृष्टिकोण के पुनःव्यासमापन (Recalibration) और अपने आधारभूत लोकाचार के लिये फिर से प्रतिबद्ध होने की आवश्यकता है। ब्रिक्स को एक बहुध्रुवीय विश्व के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करनी चाहिये जो संप्रभु समानता और लोकतांत्रिक निर्णय लेने का अवसर देता हो।
    • उन्हें NDB की सफलता से प्रेरित होना चाहिये और अन्य ब्रिक्स संस्थानों में निवेश करना चाहिये। ब्रिक्स के लिये OECD की तर्ज पर एक संस्थागत अनुसंधान प्रभाग विकसित करना उपयोगी होगा, जो ऐसे समाधान पेश करेगा जो विकासशील विश्व के लिये अधिक अनुकूल होंगे।
    • ब्रिक्स को जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते (Paris Agreement on climate change) और संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों (UN's sustainable development goals) के तहत घोषित अपनी प्रतिबद्धताओं की पूर्ति के लिये ब्रिक्स-नेतृत्त्व वाले प्रयास पर विचार करना चाहिये। इसमें ब्रिक्स ऊर्जा गठबंधन (BRICS energy alliance) और एक ऊर्जा नीति संस्थान (energy policy institution) स्थापित करने जैसे कदम शामिल हो सकते हैं।
    • ब्रिक्स देशों को विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में संकट और संघर्ष के शांतिपूर्ण तथा राजनीतिक-राजनयिक समाधान के लिये भी प्रयास करना चाहिये।

निष्कर्ष

इस प्रकार, ब्रिक्स का भविष्य भारत, चीन और रूस के आंतरिक और बाह्य मुद्दों के समायोजन पर निर्भर करता है। भारत, चीन और रूस के बीच आपसी संवाद आगे बढ़ने के लिये बेहद महत्त्वपूर्ण होगा।