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‘जैविक कृषि (Organic Farming) कार्बन अधिग्रहण(Carbon Sequestration) की सबसे कुशल प्रणालियों में से एक है।’ दिये गए कथन की व्याख्या कीजिये और भारत में जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिये सरकार की पहल और हस्तक्षेप की जांँच कीजिये।

17 Nov 2020 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | पर्यावरण

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

दृष्टिकोण:

  • संक्षेप में जैविक कृषि के बारे में बताते हुए कार्बन अधिग्रहण के साथ इसके संबंध की व्याख्या कीजिये।
  • कार्बन कृषि की एक कुशल प्रणाली के रूप में जैविक कृषि की प्रभावकारिता को समझाइये।
  • भारत में जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिये केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा किये गए उपायों पर चर्चा कीजिये।
  • निष्कर्ष दीजिये।

प्रस्तावना:

  • जैविक कृषि एक अद्वितीय उत्पादन प्रबंधन प्रणाली है जो कार्बन अधिग्रहण को सुगम बनाती है। यह जैव विविधता, जैविक चक्र और मिट्टी की जैविक गतिविधि सहित कृषि पारिस्थितिकी तंत्र को बेहतर बनाने में सहायक है।जैविक कृषि में जैविक और यांत्रिक तरीकों का उपयोग करके सभी सिंथेटिक कृषि लागतों का पूर्ण बहिष्कार किया जाता है।
  • कार्बन अधिग्रहण वैश्विक ऊर्जा प्रणाली से उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर और स्टोर कर रहा है।

प्रारूप:

कार्बन अधिग्रहण में जैविक कृषि की प्रभावकारिता:

  • सिंथेटिक उर्वरकों का विकल्प: जैविक कृषि कार्बन अधिग्रहण को बढ़ावा देती है क्योंकि यह जैविक उर्वरकों/ऑर्गेनिक मल्चिंग के उपयोग के रूप में सिंथेटिक उर्वरकों को उपयोग किये बिना एक स्थायी विकल्प प्रदान करती है।
    • ऑर्गेनिक मल्चिंग में मिट्टी को किसी भी कार्बनिक पदार्थ से ढक दिया जाता है जैसे- मिट्टी की सतह पर खाद डालना या खेत की जुताई के समय खाद डालना और उसके बाद सूखे कार्बनिक पदार्थों की एक परत को खेत की सतह पर बिछाना।
  • कार्बन अपघटन में माइक्रोबियल: इस खाद में संरेखित लाभकारी रोगाणु (Microbes) उपस्थित होते हैं, खाद का शुष्क पदार्थ कार्बन समृद्ध एवं हरा पदार्थ नाइट्रोजन युक्त होता है।
    • जब इन पदार्थो (कार्बन+ नाइट्रोजन) का अपघटन होता है तो मिट्टी में कार्बन एवं नाइट्रोजन का अनुपात 10: 1 हो जाता है, जो रोगाणुओं के प्रसार के लिये एक आदर्श दशा या स्थिति है। इस प्रकार की कृषि पद्धतियों से न केवल मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि होती है।
  • इसलिये जैविक कृषि मिट्टी की उर्वरता को बेहतर बनाने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है जो वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड से कार्बन के अधिग्रहण में सहायक है।

जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिये केंद्र सरकार की पहल:

परंपरागत कृषि विकास योजना:

  • केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय सहायता: यह 2015-16 के बाद केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम के रूप में शुरू की गई पहली व्यापक योजना है।
    • इस योजना को 90:10 (भारत सरकार: राज्य सरकार) के वित्तपोषण अनुपात के साथ 8 उत्तर-पूर्वी राज्यों, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के 3 पहाड़ी राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में 100% केंद्रीय वित्त सहायता तथा शेष राज्यों में 60:40 के वित्तपोषण सहायता के साथ लागू किया गया है।
  • जैविक कृषि को प्रोत्साहन: अधिकतम 2 हेक्टेयर भूमि पर जैविक कृषि करने के लिये एक समूह में किसानों द्वारा लाभ प्राप्त किया जा सकता है, जिसमे 60% राशि में से 50, 000हज़ार रूपए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सरकार द्वारा सहायता राशि के रूप मेंबाकी 31,000 हज़ार रूपए की राशि किसान को जैविक रूपांतरण (Organic Conversion) के लिये प्रदान की जाती है।

उत्तर पूर्वी क्षेत्र के लिये मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट

  • जैविक उत्पादों का प्रमाणीकरण: विपणन और ब्रांड निर्माण पहल के तहत योजना का उद्देश्य उपभोक्ताओं के साथ उत्पादकों को जोड़ने के लिये मूल्य शृंखला मोड में प्रमाणित जैविक उत्पादन को विकसित करना तथा उत्पादों के संग्रह, एकत्रीकरण, प्रसंस्करण आदि के लिये इनपुट, बीज, प्रमाणीकरण और सुविधाओं के निर्माण से शुरू होने वाली संपूर्ण मूल्य श्रृंखला के विकास का समर्थन करना है।

राज्य सरकार की पहल

उत्तराखंड नोडल एजेंसी भारतीय राज्य का एक और उदाहरण है जो राज्य में जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिये स्वयं नीतिनिर्णय लेती है। वर्ष 2000 में उत्तराखंड जैविक कृषि नीति बनाने वाला प्रथम राज्य था। एक समर्पित जैविक कमोडिटी बोर्ड, जो जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिये राज्य नोडल एजेंसी है, वर्ष 2003 में स्थापित की गई।

  • वर्ष 2017 में कर्नाटक राज्य द्वारा नई जैविक कृषि नीति को लागू किया गया जो टिकाऊ जैविक उत्पादन प्रणालियों को बढ़ावा देने के साथ-साथ उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच मूल्य-शृंखला संबंध पर केंद्रित है। नीति का लक्ष्य वर्ष 2022 तक 10% कृषि योग्य क्षेत्र को जैविक कृषि क्षेत्र में परिवर्तित करना है।

निष्कर्ष:

सरकार द्वारा वर्ष 2015 के जलवायु समझौते में उल्लेखित ग्रीनहाउस गैसों और सिस्टर कार्बन के उत्सर्जन को कम करने के लिये एक प्रभावी रणनीति के रूप में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जैविक कृषि को स्वीकार किया जाना चाहिये। अनुसंधान और विस्तार सेवाओं के माध्यम से जैविक कृषि को बढ़ावा देकर किसानों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल कृषि प्रणाली को अपनाने में मदद करनी चाहिये।