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किसी भी मुद्दे पर चर्चा और पुनर्विचार करने की संसद की प्राथमिक भूमिका पर सरकार असफल हो रही है। दिये गए कथन के आलोक में संसदीय समितियों के कार्यों के महत्व और इस संदर्भ में प्रचलित मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

09 Nov 2020 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

दृष्टिकोण: 

  • परिचय में दिये  गए कथन को विस्तारित कीजिये।
  • संसदीय समिति प्रणाली के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
  • संसदीय समिति प्रणाली से जुड़े प्रचलित मुद्दों पर प्रकाश डालिये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

  • प्रतिनिधित्व, संवेदनशीलता एवं जवाबदेहिता संसदीय लोकतंत्र के मूलभूत आधार हैं। भारतीय संसद द्वारा सरकार की कार्यकारी शाखा के रूप में मुख्यत: दो कार्यों को संचालित किया जाता हैं पहला कानून निर्माण का कार्य, दूसरा निरीक्षण का कार्य।
  • हाल के वर्षों में भारतीय संसद द्वारा संसदीय समिति प्रणाली का तेज़ी से प्रयोग किया गया है। प्राप्त डेटा और कई अन्य उदाहरणों से पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षों में संसदीय समिति प्रणाली का क्रमिक सीमांकन भी हुआ है।
    • अतः संसद की प्राथमिक भूमिका अर्थात् बहस, चर्चा और विचार-विमर्श को बनाए रखने के लिये संसदीय समिति प्रणाली में आवश्यक सुधार करने की आवश्यकता है।

प्रारूप: 

  • संसदीय समिति प्रणाली का महत्व:
    • अंतर-मंत्रालयी समन्वय: संसदीय समिति प्रणाली को अंतर-संबंधित विभागों और मंत्रालयों के समन्वय के संदर्भ में संसद के प्रतिनिधित्व के रूप में देखा जाता है।
    • इन समितियों को संबंधित मंत्रालयों/विभागों की अनुदान मांगों पर चर्चा करने, उनसे संबंधित विधेयकों की जाँच करने, उनकी वार्षिक रिपोर्ट पर विचार-विमर्श करने, दीर्घकालिक योजनाओं पर विचार करने तथा संबंधित रिपोर्ट को संसद के समक्ष प्रस्तुत करने आदि का कार्य सौंपा जाता है।
  • विस्तृत जाँच के साधन के रूप में: सामान्यत: इन समितियों द्वारा तैयार रिपोर्ट काफी विस्तृत होती हैं जो शासन से संबंधित मामलों पर प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध कराती है।
    • समितियों द्वारा निर्दिष्ट विधेयकों की महत्त्वपूर्ण संशोधनों और सुझावों के साथ सदन को लौटा दिया जाता है।
    • संसद के दोनों सदनों अर्थात् लोकसभा और राज्यसभा द्वारा स्थायी समितियों के अलावा विशिष्ट विषयों पर पूछताछ करने एवं रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये समय-समय पर तदर्थ समितियों का भी गठन किया जाता है। इन तदर्थ समितियों को किसी विधेयक के प्रत्येक प्रावधान पर सूक्ष्म अध्ययन करने तथा उससे संबंधित रिपोर्ट को सदन के समक्ष प्रस्तुत करने का कार्य सौंपा जाता है।
    • इसके अलावा अपने कार्यों या शासनादेश के सुचारू निर्वहन के लिये समितियों द्वारा विशेषज्ञ की सलाह और जनता की राय भी ली जा सकती है।
  • लघु संसद के रूप में कार्य करना: ये समितियाँ दोनों सदनों के राजनीतिक दलों के सांसदों की छोटी इकाईयाँ होती हैं, जो पूरे वर्ष राजनीतिक दलों के लिये कार्य करती हैं।
    • इसके अलावा, संसदीय समितियाँ ऐसी किसी लोकलुभावनी मांगों को मानने के लिये बाध्य नहीं हैं जो सामान्यतः संसद की कार्यप्रणाली में बाधा उत्पन्न करें।
    • चूँकि समिति की बैठकें गुप्त रूप से संचालित होती है अतः समिति के सदस्यों द्वारा व्हिप का पालन किये जाने की कोई बाध्यता नहीं होती है। संसदीय समिति द्वारा लोकमत के मुद्दे पर बहस और चर्चा के संदर्भ में कार्य किया जाता है।
      • इसके अलावा, इस समितियों द्वारा जनता की नज़र में आए बिना अपने कार्यों को संपन्न किया जाता है ताकि संसदीय कार्यवाही को संचालित करने वाले नियमों की तुलना में इनकी कार्यवाही अनौपचारिक बनी रहे तथा सदन के नए और युवा सदस्य जो इन समितियों में शामिल होते हैं, उनके लिये ये समितियाँ एक प्रशिक्षण इकाई के रूप में कार्य करती रहे।

क्रमिक सीमांकन:

  • निर्दिष्ट मामलों में कमी: एक शोध के अनुसार, 14वीं लोकसभा में 60% और 15वीं लोकसभा में 71% विधेयक विभाग से संबंधित स्थायी समितियों (DRSCs) को संदर्भित किये गए थे जबकि 16वीं लोकसभा में यह अनुपात घटकर 27% हो गया है।
    • DRSCs के अलावा, सदनों या संयुक्त संसदीय समितियों की चयन समितियों को संदर्भित किये गए विधेयकों की संख्या काफी कम है।
    • वर्ष 2015 में भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन (दूसरा संशोधन) विधेयक में उचित मुआवज़े और पारदर्शिता के अधिकार से संबंधित विधेयक संयुक्त संसदीय समिति को संदर्भित अंतिम विधेयक था।
  • सार्वजनिक महत्त्व के विषयों की उपेक्षा: हाल के वर्षों में संसद के कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य जैसे अनुच्छेद 370 जो जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को निरस्त करता है तथा जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करता है, को किसी भी संसदीय समिति द्वारा परिष्कृत या परिवर्तित नहीं किया गया था।
    • हाल ही में, किसानों की कृषि उपज से संबंधित तीन विधेयकों एवं तीन श्रम विधेयकों के खिलाफ ज़बरदस्त विरोध प्रदर्शन होने के बावजूद, जो निश्चित ही सदनों की प्रवर समितियों द्वारा जाँच किये जाने के योग्य थे, को सरकार द्वारा अपने बहुमत का उपयोग कर पारित कर दिया गया।
  • अन्य कमियाँ: समितियों के कामकाज को प्रभावित करने वाले अन्य मुद्दों में: समिति की बैठकों में सांसदों की उपस्थिति का कम होना, एक समिति के अधीन कई मंत्रालयों का शामिल होना, समितियों के गठन के समय सांसदों को नामित करते समय अधिकांश राजनीतिक दलों द्वारा मानदंडों का पालन न किया जाना एवं  DRSCs के पास कार्य समीक्षा करने के लिये एक वर्ष की अल्प समयावधि का होना।

आगे की राह: 

  • नई समितियों की स्थापना: अर्थव्यवस्था और तकनीकी प्रगति के मामलों में बढ़ती जटिलता को देखते हुए नई संसदीय समितियों की स्थापना की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये:
    • सलाहकार विशेषज्ञता, डेटा एकत्र करने एवं अनुसंधान सुविधाओं के लिये  संसाधनों के साथ राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का विश्लेषण प्रदान करने के लिये  स्थायी समिति।
    • संविधान संशोधन विधेयकों को संसद में प्रस्तुत होने से पूर्व जाँच के लिये  स्थायी समिति।
    • विधायी प्रारूप की पर्यवेक्षण और समन्वय के लिये विधानों पर स्थायी समिति।
  • अनिवार्य परिचर्चा: सभी समितियों द्वारा प्रमुख रिपोर्टों पर संसद में विशेष रूप से उन मामलों पर चर्चा की जानी चाहिये, जहाँ किसी मुद्दे या बिंदु पर समिति एवं सरकार के मध्य मतभेद या असहमति उत्पन्न होती है।
    • PACs की सिफारिशों को अधिक से अधिक महत्त्व दिया जाना चाहिये एवं उन्हें ‘वित्तीय मामलों में राष्ट्र के विवेक रखने वाले’ के रूप में देखा जाना चाहिये।
  • आवधिक समीक्षा: संविधान के कार्य संचालन की समीक्षा करने के लिये राष्ट्रीय आयोग के अनुसार, DRSCs की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिये ताकि समितियों की उपयोगिता को नए सिरे से रेखांकित किया जा सके।
  • संशोधित नियम: इनके अलावा, लोकसभा और राज्यसभा दोनों में प्रक्रिया के नियमों में संशोधन करने की आवश्यकता है ताकि सभी प्रमुख विधेयकों को DRSCs को संदर्भित किया जा सके ताकि DRSCs द्वारा समितियों  के दूसरे चरण को अंतिम रूप दिया जा सकें।

निष्कर्ष:

  • संसद की प्राथमिक भूमिका विचार-विमर्श, चर्चा और पुनर्विचार की है जो किसी भी लोकतांत्रिक संस्था की पहचान है। हालाँकि संसद द्वारा उन मामलों पर विचार-विमर्श किया जाता है जो जटिल प्रकृति के होते हैं एवं उनके प्रति बेहतर समझ रखने के लिये तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता है।
  • इस प्रकार, संसदीय समितियाँ इन कार्यों के लिये संसद को एक सहायक के रूप में मंच प्रदान करती हैं जहाँ सदस्य को अपने अध्ययन के दौरान कार्य क्षेत्र विशेषज्ञों और सरकारी अधिकारियों के साथ संलग्न किया जाता है। संसदीय लोकतंत्र की बेहतरी के लिये संसदीय समितियों को  दरकिनार करने के बजाय इन्हें मज़बूत किये जाने की आवश्यकता है।