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यद्यपि भारत में पोषण सुरक्षा हेतु कई सरकारी कार्यक्रम और योजनाओं का संचालन किया जा रहा है, बावजूद इसके देश में कुपोषित बच्चों की संख्या विश्व में सर्वाधिक है। परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

11 Nov 2020 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | सामाजिक न्याय

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

दृष्टिकोण:

  • भारत में पोषण ढांँचे की व्याख्या कीजिये: नीति, कानून, योजनाएंँ एवं अन्य पहल।
  • पोषण सुरक्षा बनाए रखने के लिये मौजूदा ढांँचे की कमियों को सूचीबद्ध कीजिये।
  • सुधार के लिये सुझाव देते हुए निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

  • मज़बूत संवैधानिक, विधायी नीति, योजना और कार्यक्रम प्रतिबद्धताओं के बावज़ूद, भारत में पांच वर्ष से कम आयु के 43% बच्चे कम वज़न के हैं तथा 48% भारतीय बच्चे दीर्घकालीन समय से कुपोषण से ग्रसित हैं।
  • कुपोषण बाल्य एवं वयस्क अवस्था में शारीरिक वृद्धि को प्रभावित करता है जिस कारण बीमारियों के प्रति भेद्यता बढ़ जाती है अर्थात शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर हो जाती है। कुपोषण को लेकर लोगों में जागरूकता का अभाव, स्टंटिंग अर्थात् विकास का अवरुद्ध होना, बीमारी के समग्र बोझ को बढ़ाता है तथा उत्पादकता को कम कर गरीबी की स्थिति के स्थायित्व प्रदान करता है।
  • भारत में पोषण स्थिति में सुधार के लिये राष्ट्रीय ढाँचे में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013, आंँगनवाड़ी सेवा योजना (एकीकृत बाल विकास सेवा योजना), राष्ट्रीय पोषण मिशन (एनएनएम) या पोषण अभियान तथा संविधान में कुछ प्रावधानों को शामिल किया गया है।

प्रारूप:

पोषण सुरक्षा से संबंधित सरकारी विधान और कार्यक्रम :

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013: यह अधिनियम खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिये रियायती दर पर लोगों को खाद्यान्न उपलब्ध कराता है।
  • आंँगनवाड़ी सेवा योजना: इसमें एकीकृत बाल विकास सेवा को शामिल किया गया है जिसके तहत छह वर्ष तक की आयु के बच्चों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को शामिल किया गया है।
  • राष्ट्रीय पोषण मिशन (एनएनएम): इसे ‘पोषण अभियान’ भी कहा जाता है। यह बच्चों, किशोरियों , गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिये पोषण संबंधी सुधारों पर भारत का सबसे बड़ा प्रमुख कार्यक्रम है।
  • भारतीय सविधान का अनुच्छेद 47: इसके अनुसार, राज्य अपने प्राथमिक कर्तव्यों के तहत लोगों के पोषण और उनके जीवन स्तर में सुधार करने एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के संबंध में विचार करेगा।
  • राष्ट्रीय पोषण रणनीति: इसके तहत वर्ष 2022 तक की लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस पोषण अभियान में प्रत्येक वर्ष स्टंटिंग और जन्म के समय कम वज़न को 2% तक कम करना तथा एनीमिया को प्रत्येक वर्ष 3% तक कम करने के लिये तीन वर्ष का लक्ष्य निर्दिष्ट किया गया है।
  • साथ ही साल्ट आयोडाइजेशन, माइक्रोन्यूट्रिएंट सप्लीमेंट्स (जिंक, आयरन आदि) के लिये अनिवार्य कानून के अलावा सुगर युक्त पेय पदार्थों पर कर तथा खाद्यान्न सामग्री के लिये दिशा-निर्देशों को रूपरेखा में शामिल किया गया हैं।

कमियाँ:

  • नीतियाँ और प्रारूप: पोषण की कमी को दूर करने के लिये नीति संरचना में जिन परिवर्तनीय नीति प्रारूप का पालन किया जाता आवश्यक है, उन्हें शामिल किये जाने एवं उनकी निरंतरता का अभाव है।
  • कार्यक्रम के कार्यान्वयन में निरंतर निगरानी और मूल्यांकन का अभाव: नियमित प्रक्रियाएँ निरंतर, सक्रिय और व्यवस्थित होती हैं जिनमें पिछली नीतिगत प्रक्रियाओं के पर्याप्त दस्तावेज़ों का अभाव होता है।
  • बुनियादी ढाँचे की गुणवत्ता का मुद्दा , कर्मचारियों और प्रमुख अधिकारियों की कमी, लाभार्थियों की संख्या में एक बड़ा अंतर इत्यादि कुछ ऐसी कमियाँ हैं जो पूरक पोषण प्राप्त करने में बाधक है इस योजना के तहत संचालित गतिविधियों के लिये धन को रोटेशन की अनुमति नहीं है।
  • आंँगनवाड़ी केंद्रों में जगह एवं स्वच्छता की कमी।
  • पोषण से संबंधित ढाँचा रचनात्मक भूमिका पर ध्यान केंद्रित नहीं करता है ताकि निजी क्षेत्र, विकास एजेंसियों और नागरिक समाज से मिलने वाले लाभों को प्राप्त किया जा सके। अतः एक बहुपक्षीय व्यापक पोषण योजना का अभाव है।
  • लोगों में जागरूकता की कमी और पोषण हेतु प्रामाणिक जानकारी तक पहुँच का अभाव।

सुझाव:

  • पोषण कार्यक्रमों के प्रदर्शन का बार-बार ऑडिट करना: इसके तहत व्यवधानों के प्रभाव को मापने के लिये लगातार ऑडिट किया जाना चाहिये। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) आधारित वास्तविक समय की निगरानी प्रणाली, लक्ष्यों को पूरा करने के लिये राज्यों को प्रोत्साहित करना, आईटी आधारित उपकरणों का उपयोग करने के लिये आंँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं को प्रोत्साहित करना और सामाजिक आडिट को शामिल किये जाने की ज़रूरत है।
  • कुपोषण के अंतर्निहित कारकों में सुधार: दीर्घकालीन संदर्भ में स्टंटिंग को समाप्त करने के लिये कुपोषण के अंतर्निहित निर्धारित कारक जैसे- गरीबी, खराब शिक्षा, बीमारी का बोझ एवं महिलाओं के सशक्तीकरण की बाधा को दूर करने के लिये हस्तक्षेप किया जाना चाहिये।
  • पोषण परामर्श: पोषण परामर्श (विशेष रूप से स्तनपान और सप्लीमेंटेशन के संबंध में) और सशर्त नकद हस्तांतरण द्वारा भी स्टंटिंग और बीमारी के बोझ को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • वित्तपोषण में सुधार: आंँगनवाड़ी केंद्रों के द्वारा पोषण मिशन की आवश्यक निगरानी करने के साथ ही भौतिक बुनियादी ढांँचे के विकास और धन के प्रावधान पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
  • एकीकृत बाल विकास सेवाओं, मध्याह्न भोजन और सार्वजनिक वितरण प्रणाली का पूर्ण निरीक्षण एवं उसमे आवश्यक बदलाव करने की आवश्यकता है।
  • लोगों को पोषण-विशिष्ट और पोषण-संवेदनशील व्यवहारों के प्रति जागरुक करना एवं उनके साथ संवाद के लिये कई नए अभियानों को डिज़ाइन किया जाना चाहिये जैसे- स्तनपान, आहार विविधता, हाथ-धुलाई, डीवॉर्मिंग, सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता इत्यादि।
  • फूड फोर्टिफिकेशन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

आगे की राह:

  • पोषण के लिये विशेषज्ञों द्वारा मान्य जानकारी को एकत्र करने की आवश्यकता है जो सभी के लिये सुलभ हो और यह आपसी प्रतिबद्धता एवं संसाधनों की उपलब्धता बहुक्षेत्रीय, बहुआयामी और बहुवर्षीय होनी चाहिये।
  • क्रियान्वयन और निगरानी के लिये कार्रवाई हेतु रूपरेखा, संरचना, प्रक्रिया एवं मैट्रिक्स बनाने तथा डिज़ाइन तैयार करने में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये कैलोरी और पोषण युक्त पूरक खाद्य पदार्थों पर स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर कार्य करने के लिये पोषण विशेषज्ञों को शामिल करना, आईसीडीएस एवं एमडीएम बजट दिशा-निर्देशों के तहत आसानी से उपलब्ध स्थानीय सामग्री का उपयोग करना। ये सभी कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी पहल हैं जिनके तहत निजी क्षेत्र और विकास एजेंसियांँ राज्य सरकारों के साथ मिलकर कार्य करती है।