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एक युवा महिला IAS अधिकारी को एक सरकारी विभाग में नियुक्त किया गया है तथा इस महिला अधिकारी को कार्य के दौरान बड़े पैमाने पर लैंगिक पूर्वाग्रह का एहसास होता है। पुरुष कर्मचारी न तो वरिष्ठ महिला अधिकारियों से आदेश लेना चाहते हैं और न ही महिला अधिकारियों को गंभीर/महत्त्वपूर्ण विभागीय परियोजनाओं में शामिल किया जाता हैं। महिलाओं हेतु कार्य संस्कृति को अनुकूल बनाने एवं इस प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने हेतु युवा IAS अधिकारी द्वारा उठाए जाने योग्य कदम बताइये।

22 Dec 2020 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | केस स्टडीज़

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

दृष्टिकोण

  • परिचय में सामान्य रूप से लैंगिक भेदभाव के मुद्दे को बताएँ।
  • अपने कार्यस्थल पर लिंग आधारित पूर्वाग्रह को समाप्त करने के लिये उठाए जाने वाले कदमों के बारे में बताएंँ।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय

  • लैंगिक भेदभाव सामाजिक पूर्वाग्रहों की अभिव्यक्तियाँ है। भारत जैसे पितृसत्तात्मक सामाजिक इतिहास वाले पारंपरिक देश में इस प्रकार के कई पूर्वाग्रह विद्यमान हैं जो कार्यस्थल में भी भेदभाव को बढ़ावा देते हैं।
  • इन लैंगिक पूर्वाग्रहों को नैतिक अनुशीलन, लैंगिक संवेदनशीलता और नैतिक व्यवहार के अनुकरणीय मानकों द्वारा समाप्त करना होगा।

प्रारूप

युवा महिला अधिकारी द्वारा उठाए गए संभावित कदम:

  • उदाहरण के तौर पर आगे बढ़ना: उसे अपनी टीम में सहकर्मियों और सहकर्मियों के बीच लैंगिक विविधता और लैंगिक संवेदनशीलता के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने की कोशिश करनी चाहिये। जैसे सार्वजनिक रूप से एक महिला सहकर्मी को उसकी उपलब्धियों पर बधाई देना, अन्य महिला कर्मचारियों के पक्ष में खड़ा होना इत्यादि।
    • नेतृत्व की प्रतिबद्धता के बिना निर्धारित समय अवधि में कुछ भी नहीं किया जा सकता है। यह एक अच्छी कार्य संस्कृति को बढ़ावा देगा तथा पूरे विभाग के लिये व्यावहारिक मानक निर्धारित करने में सहायक होगा।
  • कार्य में अनुशासन और दक्षता बनाए रखना: शुरुआत या बाद में अन्य अधिकारियों द्वारा कार्य में अनुशासन और दक्षता की संस्कृति को विकसित करने में इसकी सराहना की जाएगी। यह अन्य महिला अधीनस्थ कर्मचारियों को भी प्रभावित करेगा तथा उनमें एक नई सकारात्मक भावना को विकसित करेगा।
  • सामाजिक संपर्क को बढ़ाना: अपनी महिला सहयोगियों के साथ पुरुष सहकर्मियों की सहभागिता को प्रोत्साहित करना चाहिये ताकि वे उन्हें एक-दूसरे के गुणों और क्षमता से अवगत कराया जा सके। यह एक-दूसरे में विश्वास और विश्वसनीयता की भावना को विकसित करने में सहायक होगा ।
  • नैतिक अनुनय: महात्मा गांधी जैसे राष्ट्रीय नायकों की तस्वीरों के साथ, रानी लक्ष्मीबाई, सरोजिनी नायडू और इंदिरा गांधी जैसी हमारे इतिहास की बहादुर महिलाओं के चित्रों को कार्यालय की दीवारों पर लगा सकते हैं। यह सहयोगियों को राष्ट्र निर्माण में महिलाओं के अद्वितीय योगदान के बारे में याद दिलाता रहेगा।
  • भावनात्मक बुद्धिमत्ता का उपयोग: अपनी भावनाओं के साथ-साथ दूसरों की भावनाओं को समझना और उनका प्रबंधन करना। यह कार्य-जीवन में संतुलन स्थापित करने में भी मदद करेगा।
  • सेवा के लिये दृढ़ संकल्प: संगठन के मूलभूत मूल्य कर्मचारियों के लिये प्रेरक कारक के रूप में होने चाहिये। जब चीजें व्यवस्थित हो जाती हैं, तो वह छोटे से छोटा बदलाव ला सकती है।
  • कार्यालय पर प्रेरणादायक व्यक्तियों को आमंत्रित करना: महिला सदस्यों को प्रेरित करने के लिये स्वयं सहायता समूहों की मदद से कार्यालय में ऐसे व्यक्तियों को आमंत्रित करना जिन्होंने लोगों और समाज के समक्ष अपने कार्यों द्वारा एक वास्तविक प्रेरणादायक व्यक्तित्व का उदाहरण प्रस्तुत किया हो।

निष्कर्ष

  • पितृसत्तात्मक समाज को एक बेहतर क्रमिक दृष्टिकोण के साथ परिवर्तित किया जा सकता है क्योंकि विवादों के प्रत्यक्ष तौर पर होने पर अधिक जटिल मुद्दे उत्पन्न हो सकते हैं। चूंँकि कार्य संस्कृति लोगों के दृष्टिकोण और व्यवहार से संबंधित है, इसलिये इसे परिवर्तित करने में समय लगता है।
  • पुरुष सदस्यों में लैंगिक संवेदनशीलता को बहस और चर्चा के माध्यम से बढाया जा सकता है। स्थायी पूर्वाग्रहों को सामाजिक प्रभाव और अनुनय द्वारा समाप्त किया जा सकता है। दृढ़ विश्वास या अनुकरणीय व्यवहार द्वारा पितृसत्तात्मक बारीकियों के प्रति ग्रहणशीलता को लेकर निश्चित समय अवधि में परिवर्तन लाया जा सकता है क्योंकि पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी द्वारा तिहाड़ जेल में कैदियों के लिये सुधारात्मक कार्यों को इसी प्रकार लागू किया गया था।