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एशिया में सुरक्षा और स्थिरता कायम करने में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। दिये गए कथन के आलोक में शंघाई सहयोग संगठन में भारत की पूर्ण सदस्यता की संभावनाओं पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

11 Dec 2020 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

दृष्टिकोण:

  • भारत के संदर्भ में एससीओ के महत्त्व पर प्रकाश डालिये।
  • उन अवसरों के बारे में बताएँ जिनका लाभ भारत एससीओ से उठा सकता है।
  • एससीओ के साथ जुड़ी चुनौतियों के बारे में बताएंँ।
  • आगे की राह बताते हुए उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय

  • दो दशकों से भी कम समय में एससीओ यूरेशियन क्षेत्र में एक प्रमुख क्षेत्रीय संगठन के रूप में उभरा है जो यूरेशिया के 60% से अधिक क्षेत्र, विश्व आबादी का 40% से अधिक तथा विश्व जीडीपी का लगभग एक-चौथाई है।
  • यूरेशियन क्षेत्र और एससीओ की बढ़ती भूमिका तथा महत्त्व को देखते हुए इस संगठन में शामिल होने से भारत को दीर्घावधि में अधिक लाभ प्राप्त होने की संभावना है। इसलिये एससीओ एक ऐसा संगठन है जो भारत के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों का सामना करते हुए उसे सतर्कता पूर्वक अपने राष्ट्रीय हितों को पूरा करने का अवसर प्रदान करता है।

प्रारूप

भारत के लिये अवसर

  • क्षेत्रीय सुरक्षा: क्षेत्र में धार्मिक अतिवाद तथा इससे उत्पन्न होने वाली केंद्रीय/मुख्य ताकतों को बेअसर करने में एससीओ भारत को यूरेशियन सुरक्षा समूह के अभिन्न अंग के रूप में स्थापित करेगा।
  • क्षेत्रवाद: एससीओ उन क्षेत्रीय संरचनाओं में से एक है जो वर्तमान में भारत का एक अभिन्न अंग है और यह सार्क, बीबीआईएन और आरसीईपी के प्रभाव क्षेत्र को सीमित कर सकता है।
    • सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि तीन प्रमुख क्षेत्रों यथा- ऊर्जा, व्यापार एवं परिवहन संपर्क तथा पारंपरिक और गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों से निपटने के लिये एससीओ तंत्र की सुविधा ली जा सकती है।
  • मध्य एशिया से संबंध: यह भारत की कनेक्ट सेंट्रल एशिया पॉलिसी को आगे बढ़ाने हेतु एक संभावित मंच भी है। एससीओ भारत को मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार और रणनीतिक संबंध स्थापित करने के लिये एक सुविधाजनक माध्यम प्रदान करता है।
  • पाकिस्तान और चीन को प्रति संतुलित करना : एससीओ भारत को एक ऐसा मंच प्रदान करता है जहाँ वह रचनात्मक रूप से चीन और पाकिस्तान दोनों को क्षेत्रीय स्तर पर संलग्न कर सकता है तथा भारत के सुरक्षा हितों के संदर्भ में योजना बना सकता है।
  • अफगानिस्तान में स्थिरता लाना: अफगानिस्तान में तेज़ी से बदलती स्थिति और धार्मिक चरमपंथ एवं आतंकवाद जो कि भारत की सुरक्षा और विकास के लिये खतरा है, एससीओ के रूप में एक अन्य क्षेत्रीय मंच की व्यस्था की गई है।
  • रणनीतिक संतुलन: सबसे बढ़कर एससीओ को एक ऐसे समूह के रूप में देखा जाता है, जो भारत के भू-राजनीतिक संतुलन को बनाए रखने में सहायक है तथा के पश्चिमी विश्व के साथ नई दिल्ली अधिक मज़बूत संबंधों को कायम करने में सहायक है।
  • SECURE के मूलभूत आयाम: SECURE और एससीओ के सामरिक महत्त्व को स्वीकार करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री ने यूरेशिया के संस्थापक आयाम के लिये 'SECURE' संकेतक का प्रयोग किया। SECURE शब्द में शामिल अक्षरों का अर्थ है- (S) हमारे नागरिकों की सुरक्षा (E) सभी का आर्थिक विकास (C) क्षेत्र को जोड़ना (U) हमारे लोगों के लिये (R) संप्रभुता और अखंडता के सम्मान के लिये और (E) पर्यावरण संरक्षण के लिये।

भारत के समक्ष चुनौतियाँ

  • प्रत्यक्ष भूमि जुड़ाव से इनकार: यूरेशिया के साथ भारत के विस्तारित जुड़ाव में एक बड़ी बाधा भारत और अफगानिस्तान के मध्य तथा पाकिस्तान के साथ प्रत्यक्ष भूमि जुडाव की रणनीति से इनकार करना है।
    • कनेक्टिविटी की कमी ने हाइड्रोकार्बन समृद्ध क्षेत्र और भारत के मध्य ऊर्जा संबंधों के विकास में बाधा उत्पन्न की है
  • रूस-चीन के मध्य बढ़ती निकटता: आज भारत के समक्ष रूस और चीन के मध्य बढ़ती निकटता एक चुनौती है, यहांँ तक कि भारत ने अमेरिका के साथ बेहतर संबंधो को बढ़ावा दिया है। इसके अलावा रूस, चीन, पाकिस्तान का बढ़ता त्रिकोणीय समीकरण भारतीय हितों के समक्ष एक चुनौती प्रस्तुत कर सकता है जिसे भारत को समझने की आवश्यकता है।
  • BRI पर गतिरोध: भारत ने चीन की BRI परियोजना पर अपना विरोध प्रकट किया, जबकि एससीओ के अन्य सभी सदस्यों ने चीन की इस परियोजना को अपना समर्थन दिया है।
  • भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता: अतीत में एससीओ के सदस्यों द्वारा भारत और पाकिस्तान के प्रतिकूल संबंधों के कारण एससीओ के सम्मेलनों के आयोजन पर आशंका व्यक्त की गई थी तथा हाल के दिनों में उनकी यह आशंका और बढ़ गई है।

आगे की राह

  • मध्य एशिया के साथ कनेक्टिविटी में सुधार: चाबहार बंदरगाह के उद्घाटन और अश्गाबात समझौते का उपयोग अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) के संचालन पर स्पष्ट ध्यान देने के अलावा यूरेशिया क्षेत्र में एक मज़बूत संबंध स्थापित करने के लिये किया जाना चाहिये।
  • चीन के साथ संबंधों में सुधार: भारत और चीन द्वारा 21वीं सदी में एशिया के लिये एकसमान दृष्टिकोण स्थापित करने हेतु एक ऐसी प्रणाली स्थापना की जानी चाहिये जो विरोधी दलों को शांतिपूर्वक तरीके से एक साथ लाती हो।
  • पाकिस्तान के साथ संबंधों को बेहतर करना: आर्थिक सहयोग, व्यापार, ऊर्जा और क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा देने के लिये एससीओ को पाकिस्तान के साथ संबंधों को बेहतर बनाने और भारत को यूरेशिया क्षेत्र तक पहुंँच प्रदान करने तथा तापी जैसी परियोजनाओं के पथ प्रदर्शक के रूप में कार्य करना चाहिये।
  • मज़बूत सैन्य सहयोग: क्षेत्र में बढ़ते आतंकवाद के संदर्भ में एससीओ द्वारा देशों के लिये एक सहकारी तथा टिकाऊ सुरक्षा ढांँचे को विकसित करना, साथ ही क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना को और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

ऐसी रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है जो विकास में साझेदारी के माध्यम से स्थायी राष्ट्र-निर्माण सुनिश्चित करने, संप्रभुता बनाए रखने तथा क्षेत्र को आतंकवाद और अतिवाद का केंद्र बनने से रोकने के लिये भारत के क्षेत्रीय हितों के अनुकूल हो। साथ ही यह भारत के भी हित है कि यह क्षेत्र नए प्रतिद्वंद्वियों के भू-राजनीतिक क्षेत्र के रूप में विकसित न हो।