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नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 तथा भारत के संवैधानिक मूल्यों के मध्य टकराव की स्थिति देखने को मिलती है जिस कारण यह अधिनियम भारत की आंतरिक सुरक्षा और विदेश नीति के समक्ष चुनौती प्रस्तुत करता है। टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)

12 Dec 2020 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

दृष्टिकोण

  • नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • चर्चा कीजिये कि यह अधिनियम भारत के संवैधानिक मूल्यों के लिये किस प्रकार खतरा है।
  • विदेश नीति के मोर्चे पर उत्पन्न चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

  • हाल ही में संसद द्वारा नागरिकता (संशोधन) विधेयक (सीएबी), 2019 पारित किया गया था। यह विधेयक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के उन हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के व्यक्तियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है, जिन्हें अपने देश में धर्म के आधार पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा और जिस कारण ये लोग बाद में भारत में आकर बस गए।
  • यह अधिनियम मूल रूप से भारत के तीन मुस्लिम-बहुल पड़ोसी देशों के गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारत की नागरिकता देने का मार्ग प्रशस्त करता है।

प्रारूप

भारत के संवैधानिक मूल्यों के लिये खतरा

  • अधिनियम का मौलिक/आधारभूत नकारात्मक पक्ष यह है कि यह विशेष रूप से मुस्लिम वर्ग को लक्षित करता है। आलोचकों का तर्क है कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14 (जो समानता के अधिकार की गारंटी देता है) और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
  • भारत में कई अन्य देशों के शरणार्थी मौजूद हैं जिनमें श्रीलंका के तमिल और म्यांँमार के हिंदू रोहिंग्या शामिल हैं जिन्हें इस अधिनियम में शामिल नहीं किया गया है।
  • सरकार के लिये अवैध रूप से रह रहे प्रवासियों तथा पीड़ित लोगों के मध्य अंतर करना मुश्किल होगा।
  • बांग्लादेश के परे भारत की संवैधानिक लोकतंत्र के रूप में दीर्घकालिक प्रतिष्ठा रही है।
    • उदाहरण के लिये अमेरिका द्वारा भारत से धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करने का आग्रह किया गया है।
    • इस संदर्भ में भारत के आधारभूत मूल्य समानता, धर्म की समानता सहित विविधता और सहिष्णुता सहित समानता थे।
    • गांधी, नेहरू और अंबेडकर जैसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दिग्गजों ने भारत को कभी भी हिंदू मातृभूमि के रूप में मान्यता प्रदान नहीं की।

अल्पसंख्यकों के विशेष वर्ग के हित को नुकसान

  • यह स्पष्ट है कि (नागरिकता संशोधनों का उपयोग करके) यदि भारत का कोई भी मुस्लिम नागरिक भारतीय वंशावली के दस्तावेज़ों को उपलब्ध करने में असमर्थ होता है तो बाद में उसे राष्ट्रीय रजिस्टर में आसानी से गैर-नागरिक घोषित किया जा सकता है।
    • इसके विपरीत, यदि हिंदू नागरिकों के समक्ष समान स्थिति उत्पन्न होती है तो उन्हें न तो नज़रबंद किया जाएगा और न ही निष्कासित किया जाएगा।
  • यदि इस प्रश्न को कुछ धार्मिक समूहों के उत्पीड़न के साथ जोडकर देखा जाए तो इस अधिनियम में श्रीलंका (तमिल) और चीन (तिब्बतियों) के उन नागरिकों को भी शामिल किया जाना चाहिये जो भारत में रह रहे हैं।
  • सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह अधिनियम दक्षिण एशिया के सामाजिक ताने-बाने के में मौज़ूद सांप्रदायिक विभाजन को और अधिक गहरा करने की कोशिश करेगा।

पूर्वोत्तर भारत में अस्थिरता

  • नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1985 के असम समझौते के विरुद्ध है।
  • अवैध प्रवासियों (मुसलमानों को छोड़कर) को नागरिकता प्रदान किये जाने के कारण पूर्वोत्तर के मूल निवासियों में चिंता उत्पन्न हो गई है।
  • इसके अलावा, पूर्वोत्तर भारत में नागरिकता संशोधन अधिनियम के प्रति प्रतिक्रिया केवल 'ट्राइबल ज़ेनोफ़ोबिया' (विदेशी लोगों को पसंद न करना) के कारण ही नहीं है बल्कि जनजातीय समाज के समक्ष उनकी विशिष्ट संस्कृति के नष्ट होने का भी भय बना हुआ है।
    • यूनेस्को की लुप्तप्राय भाषाओं की परिभाषा के अनुसार, असम और बांग्ला भाषा को छोड़कर पूर्वोत्तर राज्यों में बोली जाने वाली 200 से अधिक भाषाएँ सुभेद्य श्रेणी में शामिल हैं।
    • असम के का बांग्लादेश से आए लोगों से भयभीत होना इस कारण से उचित है।

विदेश नीति के मोर्चे पर चुनौती

  • इस अधिनियम का सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव भारत-बांग्लादेश संबंधों पर पड़ेगा।
  • बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध विभिन्न आर्थिक और सामरिक मोर्चों पर सौहार्दपूर्ण रहे हैं।
    • भारत सरकार द्वारा बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के धार्मिक उत्पीड़न का हवाला देते हुए बांग्लादेश के नागरिकों को नागरिकता संशोधन अधिनियम में शामिल किया गया है।
    • यह बांग्लादेश के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों को खतरे में डाल सकता है, जिससे भारत की ‘पड़ोसी पहले’ की नीति के एकमात्र सफल उदाहरण को कम करके देखा जाएगा।
  • CAA द्वारा भारत ने अफगानिस्तानी लोगों के प्रति अपनी सदभावना की भावना को प्रस्तुत किया गया है। दशकों से अफगान मामलों में पाकिस्तानी हस्तक्षेप के परिणामों को देखते हुए अफगान लोग ऐतिहासिक और स्वाभाविक रूप से भारत की ओर रुख कर रहे हैं। यह अधिनियम उस सदभावना के समक्ष एक चुनौती प्रस्तुत करता है।

निष्कर्ष

भारत के कमज़ोर समुदायों के मध्य विश्वास की कमी महाशक्ति बनने की भारत कीमहत्वाकांक्षा के भाग में बाधा उत्पन्न कर सकती है। साथ ही यह भी रेखांकित किये जाने की आवश्यकता है कि किसी भी सभ्य देश में धर्म, नागरिकता का आधार नहीं हो सकता है, विशेष रूप से अगर ऐसे राष्ट्र-राज्यों के संस्थापक सिद्धांतों ने धर्मनिरपेक्ष आदर्शों और कानून के समक्ष समानता का समर्थन किया हो। इसलिये आगे बढ़ने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि विभिन्न वर्गों के मध्य सत्यता और सामंजस्य का भाव विद्यमान होना चाहिये जैसा कि महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला जैसे महान नेताओं द्वारा दिखाया गया है।