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वैश्विक स्थिरता, साझा सुरक्षा एवं नवाचार आधारित वृद्धि के लिये ब्रिक्स रणनीतिक साझेदारी के संदर्भ में, विकासशील देशों के महत्त्व को बरकरार रखने में ब्रिक्स की प्रासंगिकता की जांँच कीजिये। (150 शब्द)।

13 Nov 2020 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

दृष्टिकोण:

  • परिचय में ब्रिक्स के संदर्भ में कुछ प्रासंगिक तथ्यों का उल्लेख कीजिये।
  • विकासशील राष्ट्रों के संदर्भ में ब्रिक्स की प्रासंगिकता का उल्लेख कीजिये।
  • ब्रिक्स साझेदारी से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों को बताइए।
  • इस बात का उल्लेख कीजिये कि भारत किस प्रकार इस समूहीकरण से लाभान्वित हो सकता है।

परिचय:

ब्रिक्स देश विश्व जनसंख्या का 42%, वैश्विक जीडीपी का एक तिहाई और वैश्विक व्यापार में लगभग 17% हिस्से का प्रतिनिधित्त्व करते हैं।ब्रिक्स देशों का वैश्विक विकास, व्यापार एवं निवेश में महत्त्वपूर्ण योगदान है जो वैश्विक व्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है। विकसित राष्ट्रों में बढ़ता संरक्षणवाद विशेष रूप से अमेरिका में तथा अमेरिका-चीन के मध्य चल रहा व्यापार युद्ध बदलती हुई वैश्विक व्यवस्था को दर्शाता है।

प्रारूप:

विकासशील देशों के महत्त्व को बरकरार रखने में ब्रिक्स की प्रासंगिकता:

  • वैश्विक आर्थिक क्रम: ब्रिक्स देशों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय और मौद्रिक प्रणाली में सुधार के एक साझे उद्देश्य को प्रस्तुत किया गया जो अधिक न्यायपूर्ण और संतुलित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को स्थापित करने की तीव्र प्रतिबद्धता पर आधारित थी।
    • न्यू डेवलपमेंट बैंक और ब्रिक्स आकस्मिक रिज़र्व व्यवस्था (CRA) जैसी संस्थाएंँ वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में व्यवहार्य विकल्प साबित हो रही हैं। विश्व बैंक, आईएमएफ जैसे संस्थानों में विकसित देशों का वर्चस्व बना हुआ है तथा इन संस्थानों में विकासशील देशों की सीमित उपस्थिति है।
  • सुरक्षा: इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेज़ (Intermediate-Range Nuclear Forces-INF) संधि तथा ईरान के साथ समझौते से अमेरिका की एकतरफा वापसी ने वैश्विक शांति के लिये सुरक्षा संबंधी एक बड़ी चुनौती उत्पन्न कर दी है।
    • निष्पक्षता के सिद्धांत के आधार पर विवाद के समाधान में ब्रिक्स समूह विश्व शांति को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • गरीबी को कम करना: वैश्विक गरीबी को कम करने में ब्रिक्स का महत्त्वपूर्ण योगदान है। गरीबी के स्तर में कमी के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय विषमताओं को कम करने के लिये ब्रिक्स का निरंतर विकास अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • जलवायु परिवर्तन से निपटना: ब्रिक्स समूह, प्रमुख विकासशील देशों को टिकाऊ विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने तथा वैश्विक तापन के हानिकारक प्रभावों का मुकाबला करने के लिये व्यावहारिक समाधान तक पहुँचने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
  • संस्थानों का लोकतंत्रीकरण: UNSC के दो स्थायी सदस्यों (रूस व चीन) के साथ ब्रिक्स समूह, अन्य अंतर्राष्ट्रीय प्लेटफार्मों जैसे यूएनएससी, डब्ल्यूटीओ आदि में वैश्विक स्तर पर वैश्विक दक्षिणी देशों की आवाज़ उठाने की क्षमता रखता है।

समूहीकरण के साथ चुनौतियांँ:

  • तीन बड़े देशों रूस-चीन-भारत का बढ़ता प्रभुत्त्व ब्रिक्स के समक्ष एक चुनौती प्रस्तुत करता है। दुनिया भर के बड़े उभरते बाज़ारों और विकासशील देशों का सच्चा प्रतिनिधि बनने के लिये, ब्रिक्स को अखिल महाद्वीपीय होना चाहिये। इसके लिये इसके सदस्य देशों में अन्य क्षेत्रों एवं महाद्वीपों से और अधिक देशों को शामिल किया जाना चाहिये।
  • ब्रिक्स को वैश्विक क्रम में अपनी प्रासंगिकता को बढ़ाने के लिये अपने एजेंडे को विस्तार देने की आवश्यकता होगी। अब तक ब्रिक्स देशों के समक्ष जलवायु परिवर्तन और वित्त का विकास जैसे उद्देश्य ही इसके बुनियादी ढांँचा निर्माण के एजेंडे पर हावी है।
  • ब्रिक्स अपने मूल सिद्धांतों को साथ लेकर आगे बढ़ा है अर्थात् वैश्विक शासन में संप्रभु समानता और बहुलतावाद के प्रति सम्मान का परीक्षण किया जा सकता है क्योंकि ब्रिक्स के पाँचों सदस्य देशों द्वारा अपने स्वयं के राष्ट्रीय एजेंडा को आगे बढाया गया है।
  • डोकलाम पठार को लेकर भारत और चीन के मध्य उत्पन्न सैन्य गतिरोध ने इस अवधारणा को खंडित किया है कि ब्रिक्स सदस्यों के बीच एक सहज राजनीतिक संबंध हमेशा कायम रहेगें।
  • विभिन्न राष्ट्रों को एक साथ जोड़ने या पास लाने के लिये चीन का प्रयास, जो उसकी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पहल के साथ चीन की एक व्यापक राजनीतिक व्यवस्था का अभिन्न अंग है, ब्रिक्स के सदस्य देशों विशेषकर चीन और भारत के मध्य संघर्ष को उत्पन्न कर सकता है।

निष्कर्ष:

  • इस प्रकार ब्रिक्स अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है तथा वैश्विक आर्थिक विकास को सुनिश्चित कर सकता है ब्रिक्स बहु-ध्रुवीय विश्व का एकजुट केंद्र बन सकता है। भारत को इस मंच का उपयोग अपने भू-राजनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए करना चाहिये जिस कारण अमेरिका तथा रूस-चीन धुरी के मध्य रणनीतिक संतुलन को स्थापित करते हुए व्यापार एवं निवेश को बढ़ावा दिया जा सके।