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जलवायु अनुकूलन को जलवायु शमन (Climate mitigaton) से जोड़ने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन के शमन में वनों की भूमिका के प्रकाश में इस कथन की विवेचना कीजिये? (250 शब्द)

24 Jul 2019 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | पर्यावरण

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

• जलवायु परिवर्तन, उसके परिणामों और शमन तथा अनुकूलन की तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता को परिभाषित करते हुए परिचय दीजिये।

• बताए कि जलवायु परिवर्तन शमन के लिये वन किस प्रकार महत्त्वपूर्ण हैं।

• भारत में वनों की वर्तमान स्थिति और वन क्षेत्र के विस्तार के प्रयासों के बारे में उल्लेख कीजिये।

• सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के भारत के प्रयासों का उल्लेख करते हुए उत्तर को समाप्त कीजिये।

परिचय

हरित गृह गैसों जैसे प्राकृतिक और मानवजनित कारकों की वज़ह से बढ़ते वैश्विक तापमान से जलवायु परिवर्तन होता है। बदलते मौसम चक्र की वज़ह से लगातार बाढ़, अनियमित वर्षा, अत्यधिक गर्मी जैसे हालत सामने आते हैं और इससे खाद्य सुरक्षा को खतरा होता है और पूरा पारिस्थितिकी तंत्र इससे प्रभावित करता है। अतः जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन तकनीक को तत्काल रूप से अपनाने की आवश्यकता है।

स्वरूप/ढाँचा

  • जलवायु परिवर्तन के शमन में आमतौर पर मानव द्वारा उत्सर्जित हरित गृह गैसों में कमी को शामिल किया जाता है। अनुकूलन तकनीकें जलवायु परिवर्तन के अंतिम या अपरिहार्य प्रभावों का प्रबंधन करने के लिये की जाने वाली क्रियाएँ हैं। उदाहरण के लिये, समुद्र सतह में वृद्धि को रोकने के लिये बंधों/तटबंधों का निर्माण करना।
  • हालाँकि अनुकूलन तकनीकों को अपनाना आसान है, लेकिन वे शमन रणनीतियों का विकल्प नहीं हो सकती है। जलवायु परिवर्तन की समस्या तब तक हल नहीं हो सकती है, जब तक इसके कारणों को दूर नहीं किया जाता। इसलिये जलवायु अनुकूलन को जलवायु शमन के साथ समान रूप से होना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2018 में केरल में आई बाढ़ के कारणों में अत्यधिक रेत खनन और वनों की कटाई शामिल थी। अतः पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों (Ecologically Sensitive Zones-ESZs) में अनुचित गतिविधियों को प्रतिबंधित करने जैसी शमन रणनीतियों को अपनाया जाना चाहिये।

वनों में जलवायु परिवर्तन का शमन करने की पर्याप्त क्षमता है। वनों के कुछ लाभों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • वन जलवायु को स्थिर करने में मदद करते हैं। ये पारिस्थितिकीय तंत्रों को विनियमित करते हैं, जैव विविधता की रक्षा करते हैं, कार्बन चक्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, आजीविका को बढ़ाने में योगदान करते हैं और स्थायी विकास के मामले में सहायक बन सकते हैं।
  • ये कार्बन को सोखने में बेहद प्रभावी होते हैं जिससे हरित गृह प्रभाव कम हो जाता है। वृक्ष तथा अन्य वनस्पतियाँ प्रकाश संश्लेषण द्वारा कार्बन की मात्रा को नियंत्रित रखती हैं तथा मृदा भी पौधों और जानवरों से उत्पन्न होने वाले जैविक कार्बन का संश्लेषण करती है।
  • तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव वन समुद्री लहरों के प्रभावी अवरोधक के रूप में कार्य करते हैं। वे भूमि क्षेत्रों में खारे पानी को रोकने का काम भी करते हैं।
  • वनों में जल की गुणवत्ता को सुधारने, आर्द्रभूमि में जल संग्रहण को बढ़ाने, भूमि अपरदन को रोकने, जैव-विविधता को सुरक्षित करने तथा रोज़गार के नए अवसरों का सृजन करने की अधिक क्षमता होती है।

आगे की राह

  • वनों से मिलने वाले जलवायु लाभों का अधिकतम इस्तेमाल करने के लिये हमें वन परिदृश्यों को बरकरार रखना चाहिये, उनका निरंरत रख-रखाव करना चाहिये तथा नष्ट हो चुके वनों को पुनर्स्थापित करना चाहिये।
  • आई.यू.सी.एन. के अनुसार, प्राकृतिक प्रणालियों की हानि और गिरावट को रोकने एवं उनकी बहाली को बढ़ावा देने से वर्ष 2030 तक आवश्यक कुल जलवायु परिवर्तन शमन में एक तिहाई से अधिक योगदान हो सकता है।
    • बॉन चैलेंज (Bonn Challenge) के अंतर्गत वर्ष 2020 तक 150 मिलियन हेक्टेयर तथा वर्ष 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर की वनों की स्थिति में सुधार करना है। 350 मिलियन हेक्टेयर के लक्ष्य तक पहुँचने पर यह 1.7 गीगाटन के बराबर CO2 को कम कर सकता है।
  • REDD+ (Reducing Emissions from Deforestation and Forest Degradation in Developing Countries) जैसे कार्यक्रमों की सहायता से विकासशील देश अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित कर सकेंगे। साथ ही इसके माध्यम से स्थानीय समुदायों को भी लाभ प्राप्त हो सकेगा।

निष्कर्ष

वर्ष 2024 तक भारत की 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की महत्त्वाकांक्षा को पेरिस जलवायु समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के साथ जोड़ा जाना चाहिये। भारत ने वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वनों और वृक्षावरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के अतिरिक्त कार्बन सिंक का वादा किया।

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के एक हिस्से के रूप में ग्रीन इंडिया राष्ट्रीय मिशन में 6 मिलियन हेक्टेयर वनों की पुनर्स्थापना और भारत के 23% से 33% वन क्षेत्र का विस्तार करने की परिकल्पना की गई है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिये इसे सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये।